विष्णु शाक्यवार। बीनागंज
चांचौड़ा में रानी चंपावती के नाम से बने किले को राज्य पुरातत्व विभाग ने न सिर्फ संरक्षित किया है, बल्कि 4.34 करोड़ की लागत से ऐतिहासिक स्वरूप दिया जा रहा है। इतिहास को आइना दिखाने वाले चांचौड़ा के चंपावती दुर्ग को गुड़, उड़द की दाल, जूट, बेल, चूना और ईंट का गारा ऐतिहासिक चक्की में तैयार कर पुनर्जीवित किया जा रहा है। छह महीने के भीतर इस दुर्ग को पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। साथ ही लोग चंपावती के किले की भव्यता को भी निहार सकेंगे।
अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे करने वाली खींची राजवंश की रानी चंपावती के नाम पर गुना जिले के चांचौड़ा स्थित किले को राज्य पुरातत्व विभाग ने संरक्षित करने के बाद जीर्णोद्धार का काम शुरू कर दिया है। पुरातत्व विभाग के अफसरों का कहना है कि ऐतिहासिक काल में रानियों के नाम पर महल हुआ करते थे, लेकिन प्रदेश का यह इकलौता किला है, जो कि रानी चंपावती के नाम पर है। खींची राजवंश के राजा विक्रम सिंह ने अपनी पत्नी रानी चंपावती के नाम पर इस किले का निर्माण कराया था। 60 हजार वर्गफीट में बना यह दुर्ग आज भी खींची राजवंश की वीरगाथा का साक्षी है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की तरफ है, जो कि पूरी तरह से ढह गया है। दूसरा प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ है, लेकिन इस किले में चार बुर्ज बने है, इसके परकोटे की ऊंचाई करीब 12 मीटर है। दो मंजिला किले में हवा महल, रानी महल, मोती महल और घुड़साल की अलग से व्यवस्था है। जब यह दुर्ग पुनर्जीवित हो जाएगा।
बावड़ी में कूदकर किया था जौहर
अंग्रेजी सेना के अफसर जॉन बोटिस ने चंपावती के दुर्ग पर हमला कर दिया। राजा विक्रम सिंह और विक्रम सिंह के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें राजा की मौत हो गई। उसके बाद जब अंग्रेजों ने किले पर चढ़ाई की, तो रानी चंपावती ने मोती महल में बनी बावड़ी जो कि 50 मीटर गहरी थी, जिसमें कूदकर जौहर कर लिया।
परकोटों को दिया जा रहा है स्वरूप
राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों का कहना है कि चंपावती के जिन परकोटों ने अंग्रेजी सेनाओं के दांत खट्टे कर दिए थे, उनकी मरम्मत और ऐतिहासिक स्वरूप देने में सैकड़ों टन गुड़, उड़द की दाल और बेल का प्रयोग किया जा रहा है। छह महीने के भीतर इस किले का जीर्णोद्धार का काम पूरा कर लिया जाएगा।