अनूप भार्गव, नईदुनिया, ग्वालियर(Vitamin D 3 Deficiency)। 46 प्रतिशत नवजातों में विटामिन डी-3 की कमी सामने आई है। वहीं 85 प्रतिशत माताएं विटामिन डी की कमी से ग्रस्त मिलीं। इनमें से 18 प्रतिशत माताएं और 11 प्रतिशत नवजातों में अत्यधिक कमी पाई गई।
इस बात का पता जेएएच के कमलाराजा अस्पताल स्थित बाल एवं शिशु रोग विभाग में डाक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में चला है। अध्ययन में चिकित्सकों ने पाया कि इस वजह गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को सन एक्सपोजर कम मिलने और विटामिन डी सप्लीमेंट न मिलना रहा।
ऐसी माताओं से जन्मे बच्चे शिशुकाल में ही विटामिन डी-3 की कमी लेकर पैदा हो रहे हैं। हालांकि मां का दूध मिलने व अतिरिक्त सप्लीमेंट के बाद ये कमी पूरी हो रही है, लेकिन यह स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है।
चिकित्सक का कहना है कि बच्चों के खान-पान पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है। ज्यादातर आजकल बच्चे फास्ट फूड व बिस्किट सहित मैदा आइटम खा रहे हैं, जिनमें कोई पोषण नहीं। हरी सब्जियां और मौसमी फल खाना बच्चों की आदत बनाने की जरूरत है।
विटामिन डी-3 को आमतौर पर धूप से मिलने वाले विटामिन के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ये हमारे शरीर में तब बनता है जब त्वचा पर सूरज की किरणें पड़ती हैं। इन सभी आदतों के जरिये बच्चों में विटामिन डी-3 की कमी पूरी होगी।
चिकित्सकों ने अध्ययन में पाया कि 30 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में विटामिन डी की कमी सबसे अधिक मिली। अध्ययन के लिए 20 से 30 वर्ष और 30 से अधिक वर्ष की महिलाओं के ग्रुप बनाए थे। बाल एवं शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय गौड़, प्राध्यापक डॉ. रवि अम्बे के मार्गदर्शन ने डॉ. दीक्षा शोक ने यह अध्ययन किया।
जेएएच में बाल एवं शिशु रोग विभाग के प्राध्यापक डॉ. रवि अंबे का कहना है कि सन एक्सपोजर कम होने और विटामिन डी सप्लीमेंट नहीं मिलने से प्रसूताओं में विटामिन डी कम होता है। इनसे जन्मे नवजात में भी विटामिन डी कम होता है। विटामिन डी-3 की कमी के मद्देनजर जन्म से एक वर्ष तक हर बच्चे को पोषण के साथ विटामिन डी देना चाहिए।