अनिल तोमर, नईदुनिया, ग्वालियर। यूरिया का खेती में उपयोग ही नहीं किया जा रहा, बल्कि इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। किसानों के लिए सब्सिडी पर मिलने वाली यूरिया का दुरुपयोग कालाबाजारी करके डीजल वाहनों में डालने, मिलावटी दूध और नकली शराब बनाने में भी किया जा रहा है। ऐसे में रकबा घटने के बावजूद यूरिया की मांग लगातार बढ़ने का यह भी बड़ा कारण है।
बताया जा रहा है कि वाहनों में डाले जाने वाले यूरिया का इंतजाम दलालों के माध्यम से सरकारी सब्सिडी पर किसानों को मिलने वाले यूरिया से किया जा रहा है, क्योंकि दोनों की दाम में काफी अंतर है। हाईवे किनारे जगह-जगह यूरिया बिक्री के लिए नजर आने वाले छोटे-छोटे सेंटरों से इनकी बढ़ती खपत का अंदाजा लगाया जा सकता है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ऐसे सेंटरों पर खेती के लिए दिया जाने वाले यूरिया के उपयोग होने के मामले सामने भी आए हैं। ग्वालियर चंबल अंचल में मिलावटी दूध, नकली शराब पर छापेमारी में भी कई बार यूरिया पकड़ा जा चुका है।
बता दें कि देश में वाहनों के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बीएस-6 मानक लागू हैं। डीजल वाहनों में गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए डीईएफ (डीजल एग्जास्ट फ्लूड) या एडब्लू (एडब्ल्यू) का उपयोग होता है। इसमें 32.5 प्रतिशत नाइट्रोजन और 67.5 प्रतिशत डी-आयोनाइज्ड पानी होता है। मिलावटखोर इसमें खेती के लिए किसानों को दिए जाने वाला दानेदार यूरिया घोलकर मिला रहे हैं। इस यूरिया में 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है।
दाम में अंतर होने के कारण मिलावटखोरों को इससे सीधा फायदा होता है। किसी वाहन में यदि 20 लीटर एडब्लू डलता है तो इसमें 15 लीटर असली एडब्लू के साथ पांच लीटर यूरिया घोल दिया जाता है, जिसे तैयार करने में डेढ़ किलो दानेदार यूरिया लगता है जिसकी लागत मात्र 12 रुपये आती है जबकि एडब्लू 45 रुपये लीटर के हिसाब से बेचा जाता है।
इस तरह मिलावट से प्रति टैंक 200 रुपये तक का बचत हो जाता है। हालांकि इससे बड़े वाहन जैसे ट्रक का एससीआर सिस्टम चोक हो जाता है और वाहन बार-बार बंद होने लगता है। ट्रक आपरेटर विष्णु शर्मा बताते हैं कि गलत एडब्लू डालने से उनके ट्रक में भी यह परेशानी आई थी। चालक को हाईवे किनारे ऐसे सेंटरों से यूरिया न लेने की हिदायत दी गई है।
ग्वालियर चंबल अंचल मिलावटी दूध के लिए बदनाम है। इसे बनाने में यूरिया का उपयोग कई बार छापेमारी में सामने आ चुका है। खाद्य सुरक्षा विभाग की सैंपल रिपोर्ट में भी यूरिया मिल चुका है। मिलावटी दूध के कारोबार से जुड़े लोगों के मुताबिक 40 लीटर नकली दूध बनाने में 500 ग्राम यूरिया का उपयोग किया जाता है।
इससे दूध गाढ़ा होता है और रंग भी नहीं बदलता। अंचल में एक से सवा लाख लीटर मिलावटी दूध तैयार होता है, जिसमें रोजाना 12 क्विंटल से अधिक यूरिया खपत का अनुमान है। इसी तरह नकली शराब बनाने में माफिया ओवर प्रूफ यानि ओपी का उपयोग करते हैं। तीखापन बढ़ाने के लिए इसमें यूरिया की कुछ मात्रा मिलाई जाती है।
यूरिया तो उतनी ही शासन से आती है, जितनी किसानों को जरूरत होती है। इसकी किल्लत किसानों द्वारा स्टाक करने व फसलों में अधिक उपयोग करने से होती है। यूरिया के दुरुपयोग से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। - आरबीएस जाटव, उप संचालक, कृषि विकास व किसान कल्याण विभाग