Angarki Chaturthi 2021: ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। हिंदू धर्म में हर महीने आने वाली चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है और इस दिन गणपति की पूजा का विधान है। यह चतुर्थी जब मंगलवार को पड़ती है तो यह अंगारकी चतुर्थी कहलाती है। ज्योतिषाचार्य राजेश कुमार पुरी ने बताया कि चतुर्थी पर भगवान गणपति की पूजा विधि-विधान से करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शिव पुराण के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन दोपहर में भगवान गणेश का जन्म हुआ था, इसलिए हर माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणपति जी के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। चतुर्थी के दिन का व्रत बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है। इस व्रत को करने वाले के हर तरह के कर्ज व रोग प्रभु की कृपा से दूर हो जाते हैं। गणेशजी की पूजा के साथ यह विशेष अवसर उन जातकों के लिए बेहद खास माना जाता है। जो मंगल के दोष से परेशान होते हैं, इस दिन गणेशजी की पूजा के साथ हनुमानजी को सिंदूर से तिलक करें तो मंगलदोष में राहत मिलती है।
पूजा व्रत विधिः व्रत करने वाले सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें। पूजा के दौरान तिल और गुड़ के लड्डू, फूल, जल, चंदन, दीप-धूप, केला और मौसमी फल, नारियल आदि प्रसाद के तौर पर रखें। अंगारकी चतुर्थी की पूजा में गणेशजी की मूर्ति के साथ मां दुर्गा की प्रतिमा भी रखें। गणेश पूजा के समय गणेश स्त्रोत का पाठ करते हुए उनकी प्रिय वस्तुएं जैसे धूप-दीप, पुष्प, दुर्वा और मोदक अर्पित करें। उसके बाद गणेश जी की आरती करें और शिवजी का भी ध्यान करें। पूजा में गणेश जी को लड्डुओं व मोदक का भोग लगाएं और उसे प्रसाद के तौर पर लोगों में बांट दें। मंगल के दोष से राहत पाने के लिए इस दिन गणेशजी के साथ हनुमान जी का भी ध्यान करें। इसके साथ ऋणहर्ता और विघ्नहर्ता गणपति बप्पा के गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
गणेश स्तोत्रः
-प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्
भक्तावासं स्मरेनित्यम आयुष्कामार्थ सिध्दये
-प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्
तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम
-लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धुम्रवर्णं तथाषष्टम
-नवमं भालचंद्रं च दशमं तु विनायकम्
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम
-द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिध्दीकर प्रभो
-विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम
-जपेद्गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासे फलं लभेत्
संवत्सरेण सिध्दीं च लभते नात्र संशय:
-अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: