नईदुनिया, बेहट। मध्यप्रदेश के बेहट में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर आस्था, इतिहास और संगीत का अनोखा संगम है। मान्यता है कि यह मंदिर सुर सम्राट तानसेन की तान से टेढ़ा हो गया था। सावन माह में यहां देशभर से शिवभक्त पहुंचते हैं, जो इस मंदिर को सिद्ध पीठ मानते हैं। झिलमिल नदी के किनारे बसे इस मंदिर की महिमा और परंपराएं भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बनी हुई हैं।
बेहट का यह शिव मंदिर सिर्फ धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यह मंदिर अकबर के नौ रत्नों में से एक तानसेन की जन्मभूमि पर स्थित है। मान्यता है कि तानसेन की रियाज़ के प्रभाव से मंदिर की संरचना टेढ़ी हो गई थी। कई बार इसे सीधा करने का प्रयास किया गया, लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगी। आज भी यह मंदिर भक्तों और संगीत प्रेमियों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है।
सावन का महीना आते ही मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है। भोर से ही जलाभिषेक करने के लिए भक्त मंदिर पहुंचते हैं। पूरे सावन में यहां विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। भक्त शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र आदि अर्पित कर महादेव से आशीर्वाद मांगते हैं।
इस मंदिर के परिसर में केवल पूजा-पाठ ही नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। अखिल भारतीय तानसेन समारोह की अंतिम सभा यहीं होती है। देशभर के ख्यातनाम कलाकार इस स्थान पर प्रस्तुति देते हैं और मानते हैं कि यहां भगवान शिव और तानसेन का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
स्थानीय श्रद्धालु बताते हैं कि यह मंदिर एक सिद्ध पीठ है। यहां आकर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अमन शर्मा, एक भक्त, कहते हैं कि यह चमत्कारी मंदिर है। भोलेनाथ के दर्शन मात्र से मन को शांति मिलती है।'
राकेश गोयल बताते हैं कि 'हम हर साल ग्वालियर से सावन में दर्शन के लिए बेहट मंदिर जाते हैं। वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जीवित है।'