
ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। ग्वालियर गौरव दिवस की शाम संगीत, अध्यात्म और जोश से भरपूर रही, जब देश के प्रख्यात सूफी गायक कैलाश खेर ने अपनी सुफियाना गायकी से संगीतधानी को मंत्रमुग्ध कर दिया। ग्वालियर व्यापार मेला परिसर में आयोजित इस भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम में हजारों दर्शकों की मौजूदगी ने इस शाम को यादगार बना दिया। रंग-बिरंगी रोशनी, धड़कते बीट्स और सूफियाना सुरों के बीच ग्वालियर पूरी तरह संगीत में डूबा नजर आया।
कार्यक्रम की शुरुआत कैलाश खेर ने अपने लोकप्रिय गीत 'मैं तो तेरे प्यार में दीवाना हो गया…' से की। इसके बाद 'तौबा-तौबा रे तेरी सूरत माशा अल्लाह', 'रंग देंगे पिया रंग के रंग दे' जैसे गीतों ने माहौल में सूफियाना रंग घोल दिया। हर गीत पर दर्शकों की तालियां और उत्साह देखते ही बन रहा था। युवा वर्ग खासतौर पर उनके गीतों पर झूमता और गाता नजर आया।
कैलाश खेर ने मंच से आडियंस से संवाद करते हुए उनकी फरमाइशों को भी पूरा किया। “रांझा-रांझा”, “आओ री” जैसे गीतों पर पूरा पंडाल एक सुर में गुनगुनाता दिखा। उन्होंने ग्वालियर की आडियंस की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि यहां के श्रोता संगीत को दिल से सुनते और महसूस करते हैं।
महफिल में उस वक्त संजीदगी छा गई, जब कैलाश खेर ने 'मिलके भी ना हम मिले, मीलों के हैं फासले' प्रस्तुत किया। वहीं फिल्म बाहुबली का वीर रस से ओतप्रोत गीत 'कौन है वो, कहां से वो आया' गाते ही माहौल जोश से भर उठा। टीम बैंड ‘कैलासा’ की जुगलबंदी पर दर्शक तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाए। “तेरी दीवानी” और 'अल्लाह के बंदे' जैसे गीतों ने देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा।
मंच पर आते ही कैलाश खेर ने ग्वालियर को बलिदानियों, संस्कृति और अध्यात्म की नगरी बताया। उन्होंने कहा कि यह संगीतधानी है, मैं इसे बार-बार प्रणाम करता हूं। आज आप सिर्फ सुनिए मत, मेरे साथ गाइए, नाचिए और मस्त हो जाइए। उनके इस संबोधन ने दर्शकों में नया उत्साह भर दिया।
कार्यक्रम के दौरान मंच और आडियंस के बीच ज्यादा दूरी होने पर कैलाश खेर खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से बैरिकेड हटाने की बात कही। आडियंस खुद आगे बढ़ी तो पुलिस ने रोका, जिससे कुछ देर के लिए अफरा-तफरी मच गई। स्थिति को संभालते हुए कैलाश बोले, “मेरे फैंस से कुछ मत कहो भाई…”, जिसके बाद माहौल शांत हुआ।
मीडिया से बातचीत में कैलाश खेर ने कहा कि ग्वालियर वह धरती है, जहां खंड-खंड में अध्यात्म और संस्कृति बसती है। उन्होंने बताया कि वह पहले भी 2012 में यहां आकर तानसेन को श्रद्धांजलि दे चुके हैं और इस बार सूफी गीतों से उन्हें स्वरांजलि दे रहे हैं। साथ ही उन्होंने भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को भी नमन किया। कैलाश ने कहा, “ग्वालियर जैसे सुनने वाले कहीं नहीं मिलते।”