9 वीं सदी मे गुर्जर प्रतिहार वंश के 10वें शासक सम्राट देवपाल गुर्जर ने कराया था इस मंदिर का निर्माण़1ि01 खंबे, 64 कमरे और शिवलिंग बढ़ाते हैं मंदिर के प्रति आकर्षण
Chausath Yogini temple News: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। सैर-सपाटा करने वालों की संख्या हमारे प्रदेश ही नहीं संपूर्ण देश में कमी नहीं है। जब भी ऐतिहासिक धरोहर के करीब पहुंचते हैं, तो इतिहास के सागर में गोता लगाने के लिए मजबूर हो उठते हैं। उनकी जुबां पर एक-एक कर कई सवाल आते हैं, जिनके जवाब टूरिस्ट गाइड देते हैं। हजारों-साल पुराने इतिहास में विशिष्ट जगह है मुरैना का चौसठ योगिनी मंदिर की, जो मितावली नाम के गांव की एक पहाड़ी पर है। इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी मे गुर्जर प्रतिहार वंश के 10वें शासक सम्राट देवपाल गुर्जर ने कराया। था। मंदिर के प्रति आकर्षण 101 खंबे, 64 कमरे और शिवलिंग बढ़ाते हैं। मंदिर परिसर के बीचों-बीच गोलाकार शिवालय है। मुख्य द्वार को गौर से देखने पर 101 खंभे कतारबद्घ नजर आते हैं। इन्हें देखने पर संसद भवन के गलियारे की तस्वीर दिमाग में छा जाती है। सालों गुजर जाने के बाद यह मंदिर अभी भी यथा स्थिति में है, क्योंकि इसके निर्माण में लाल-भूरे बलुआ पत्थर को उपयोग में लाया गया। इससे स्पष्ट है यह मंदिर तेज पानी और आंधी से भी टक्कर ले रहा है। कहा जाता है मंदिर के एक कमरे मे शिवलिंग के साथ देवी योगिनियों की मूर्तियां भी थीं, लेकिन यह अब दिल्ली संग्रहालय व ग्वालियर किले के संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है। इसी आधार पर इस परिसर का नाम चौसठ योगिनी पड़ा। ब्रिटिश वास्तुविद सर एडविन लुटियंस द्वारा बनाया गया भारत का संसद भवन भी इसी चौसठ योगिनी मंदिर की आकृति का है। लुटियंस ने संसद भवन का डिजाइन इसी गुर्जर प्रतिहार के मंदिर से लिया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को प्राचीन ऐतिहसिक स्मारक घोषित किया है। जिसकी विदेशों में भी पहचान है।
करते हैं संसद भवन की बात
ग्विालियर से चौसठ योगिनी मंदिर 30 किलामीटर दूर स्थित है। यह मंदिर भारत के उन चौसठ योगिनी मंदिरों में से एक है जो अभी भी अच्छी दशा में हैं। यह मंदिर एक वृत्ताकार आधार पर निर्मित है, जिसमें 64 कक्ष हैं। मध्य में एक खुला हुआ मंडप है। यह मंदिर 1323 ई में बना था। ऐसा माना जाता है कि भारत का संसद भवन (जो 1920 में बना), इसी शैली पर निर्मित है।