Chitragupta Puja: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। होली के बाद महाराज चित्रगुप्त पूजा चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 20 मार्च को रविवार के दिन मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि चित्रगुप्त पूजा वर्ष में दो बार मनाई जाती है एक होली के बाद तो दूसरी दीपावली के बाद। चित्रगुप्त पूजा कायस्थ समुदाय के द्वारा की जाती है। इस पूजा को दवात पूजा भी कहा जाता है, जहां कागज, पेन की पूजा की जाती है, इसे कायस्थ लोग अध्ययन का प्रतीक मानते है। घर में कमाने वाले सदस्य अपनी आय चित्रगुप्त के सामने लिखते है, और घर चलाने के लिए जितने खर्च की जरूरत रहती है उसे भी लिखते है, ताकि अगले साल उनकी आय में इजाफा हो सके।
इस दिन नए बहीखातों पर ‘श्री’ लिखकर कार्य का आरंभ भी किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि कारोबारी अपने कारोबार से जुड़े आय-व्यय का ब्योरा भगवान चित्रगुप्त के सामने रखते हैं और उनसे व्यापार में आर्थिक उन्नति का आशीर्वाद मांगते हैं। भगवान चित्रगुप्त की पूजा में लेखनी-दवात का बहुत महत्व है।
पूजा विधि
चित्रगुप्त की पूजा के लिए एक चौकी पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर को रख कर श्रद्धापूर्वक उन्हें अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, पुष्प, धूप-दीप और मिष्ठान अर्पित करें। साथ ही एक नई कलम या कोई लेखनी जिसका आप उपयोग करते हो, उनको अर्पित करें तथा उसकी पूजा करे। सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ओम चित्रगुप्ताय नमः लिखे। चित्रगुप्त की पूजा के फल स्वरुप नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है तथा सभी पाप नष्ट होते हैं। साहस, शौर्य, बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने सूर्य देवता से कहा कि वह 11000 वर्षों के लिए समाधिस्थ होने जा रहे हैं। और वह इस वक्त सृष्टि की रक्षा करें। 11000 वर्षों के बाद जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके समक्ष कोई दिव्य व्यक्ति कलम और दवात लिए खड़ा है। जब ब्रह्मा ने उनसे परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका जन्म आपकी काया से हुआ है। इसलिए मेरा नामकरण करने के आप योग्य हैं अतः मेरा नामकरण करें व मुझे कोई कार्य बताएं। तो इस पर ब्रह्मा ने कहा कि तुम्हारा जन्म मेरी काया से हुआ है इसलिए तुम्हें कायस्थ नाम देता हूं। और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। और तुम्हारा कार्य धर्मराज यमराज के दरबार में मनुष्य के कर्मों का व उनके जीवन मृत्यु का लेखा-जोखा रखोगे। ब्रह्मा चित्रगुप्त को आशीर्वाद देते हुए अंतरध्यान हो गए। बाद में भगवान चित्रगुप्त का विवाह एरावती व सुदक्षणा से हुआ। सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम व कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुए। जबकि एरावती से उन्हें आठ पुत्रों की प्राप्ति हुई जो इस प्रकार से हैं माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड, अस्थाना, भटनागर, अंबष्ट और बाल्मीकि के नाम से धरती पर विख्यात हुए।