Bhairav Ashtami 2023: ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। भैरव अष्टमी...काल भैरव का प्राकट्योत्सव। कहा जाता है- काल भैरव के दर्शन मात्र से जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। काशी के कोतवाल के बारे में यही मान्यता है। शहर में भी प्राचीन भैरव मंदिर हैं, ग्वालियर के जो लोग काशी नहीं जा सकते, वह शहर के ही प्राचीन भैरव मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं। शहर में ऐसे पवित्र और सिद्ध मंदिर हैं, जहां कहा जाता है- भैरवजी विराजमान हैं, भक्तों की रक्षा करते हैं। हर साल भैरव अष्टमी मार्गशीर्ष माह में अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, इस बार 5 दिसंबर को भगवान काल भैरव का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। शहर के प्राचीन भैरव मंदिरों में लाखों श्रद्धालु दर्शन करते हैं, उत्सव की तरह भैरव अष्टमी सालों से मनाई जा रही है। इस बार जानिए...शहर के प्राचीन भैरव मंदिरों के बारे में सबकुछ, यहां भैरव अष्टमी कैसे मनाई जाएगी, यहां की क्या मान्यता है...
भैलसे वाली माता मंदिर के ऊपर पहाड़ पर स्थित है भैरव नाथ मंदिर। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है- यह मंदिर करीब 500 वर्ष प्राचीन है। यहां साधु संत तपस्या करते थे। उन्हीं के तप से यहां मूर्ति प्रकट हुई। यहां के बारे में कहा जाता है- यहां के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, हर तरह का भय यहां दर्शन, पूजन करने से खत्म होता है।
सराफा बाजार स्थित बटुक भैरव मंदिर। इसे बटुक भैरव प्रांगण कहा जाता है। मंदिर की देखरेख करने वाले कारोबारी संदीप मित्तल ने बताया कि यहां भगवान भैरव बाल स्वरूप में विराजित हैं। यहां स्वयंभू प्रतिमा है। यह प्रतिमा करीब 250 वर्ष पुरानी है। इस मंदिर के बारे में वह बताते हैं- जिस जगह यह मंदिर है, वह किसी और की थी। जब वह 12 वर्ष के थे, तब उनके पिता इस जगह को लेना चाहते थे। 1977 में उन्हें स्वप्न में भैरवजी ने गरुड़ भैरव के रूप में दर्शन दिए। महज छह माह बाद ही यह जगह उनके पिता ने खरीद ली। इसी प्रांगण को बटुक भैरव प्रांगण कहा जाता है- यहां सभी लोग दर्शन कर सकते हैं। यहां हर साल भैरव अष्टमी पर भंडारा होता है। इस बार 56 भोग का प्रसाद लगाया जाएगा, फिर अन्नकूट प्रसादी वितरण होगा। यहां नारियल चढ़ाने की परंपरा है।
ग्वालियर में ऐसा भी भैरव मंदिर है, जहां त्रिमूर्ति भैरव की प्रतिमा है। यह मंदिर है बच्छराज का बाड़ा स्थित आशापूर्ण भैरव मंदिर। मंदिर की देखरेख करने वाले संजीव पारख ने बताया कि बीच में तोलियासर जी भैरव, बाई ओर अलाय के भैरवनाथ जी और दाई ओर कोडमदेसर के भैरवजी की प्रतिमा है। इस तरह त्रिमूर्ती भैरव हैं। यहां सभी की मनोकामना पूरी होती है, इसलिए आशापूर्ण भैरव मंदिर नाम रखा गया है। यह मंदिर 121 साल प्राचीन है। इस बार सुबह 110 बजे वैदिक मंत्रोच्चार से पूजन होगा। फिर पंचामृत से अभिषेक होगा। इसके बाद हवन होगा। शाम को मंदिर की सजावट, प्रतिमा को सोना-चांदी के वर्क से सजाया जाएगा। देशी घी से बने 125 किलो केशरिया बूंदी के लड्डू व मंगोड़े का भोग लगाया जाएगा और प्रसादी वितरण होगा।
सत्यनारायण की टेकरी स्थित प्राचीन भैरव मंदिर बिलकुल वैष्णोदेवी की तर्ज पर बना हुआ है। यहां भैरव मंदिर के नीचे से गुप्त रास्ता है। इसके अंदर मां वैष्णोदेवी की प्रतिमा है। यह मंदिर इतना प्राचीन है, यह चूने और गारे से बना है। यहां साधु संत तपस्या करते थे। यहां हर साल भैरव अष्टमी पर भंडारा होता है।
भैरवनाथ मंदिर, माधोगंज
माधोगंज स्थित भैरवनाथ मंदिर यहां के व्यापारियों की आस्था का केंद्र है। यहां कारोबार करने वाले कारोबारी बताते हैं- यहां दर्शन मात्र से ही सभी भय समाप्त हो जाते हैं। इस बार पहले अभिषेक, फिर श्रंगार और हवन होगा। इसके बाद प्रसादी वितरण होगा।
भैरव अष्टमी को भगवान शिव के अवतार काल भैरव के प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुमेरू पर्वत पर भगवान ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा- वह सर्वस्व हैं, सृष्टि उन्हीं से उत्पन्न हुई है, इसलिए वह सर्वशक्तिमान हैं। उनके पांचवे मुख ने अभिमानवश भगवान भोलेनाथ का उपहास उड़ाया था, इससे क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ के ज्योतिपुंज से जो शक्ति निकली, उससे काल भैरव प्रकट हुए। भगवान शिव ने भैरवजी से कहा था- तुम ब्रह्मा पर शासन करो। इस पर उन्होंने कनिष्ठा अंगुली के नख से ब्रह्माजी का पांचवा शीष काट दिया था। जिस दिन कालभैरव प्रकट हुए, उस दिन मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी ही थी।