Colors of Gwalior Tradition: आनंद धाकड़, ग्वालियर नईदुनिया। बाप के कंधे चढ़के, जहां बच्चे देखें मेले, मेले में नट के तमाशे, कुल्फी और चाट के ठेले...फिल्म वीर-जारा के गाने की यह लाइनें अंचल की शान कहे जाने वाले ग्वालियर व्यापार मेला को चरितार्थ करती हैं। व्यापार मेला का इतिहास काफी रोचक है। शुरुआत 1905 में तत्कालीन शासक माधौराव सिंधिया ने की थी। इस साल मेला दिसंबर में 117 साल पूरे कर लेगा। खास बात यह है इतने साल गुजर जाने के बाद भी यह मेला जवान है। इसके चेहरे का नूर हर साल बढ़ता ही जा रहा है, क्योंकि यहां पहुंचने वाले सैलानियों को सौगातें देने के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत रहती है। शुभारंभ सत्र में कुछ ऐसी घोषणा हो जाती है, जिसका फायदा व्यापारियों के साथ खरीदारों को भी मिल जाता है। मेले में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में प्रस्तुती देने के लिए ख्यात कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है। बहरहाल, अभी हम सिर्फ ग्वालियर व्यापार मेले के वैभव की बात करेंगे।
पशु मेला है मुख्य अंगः व्यापार मेला का औपचारिक शुभारंभ दिसंबर में होता है, इससे पहले परिसर मे दूसरी ओर पशु मेला लगने लगता है। इसके लिए अलग से जगह चिन्हित कर दी गई है। यहां हर साल दस हजार से अधिक पशुओं की खरीद की जाती है। खास बात यह है पशु मेले में पशुओं की विशेष नस्लों को लाया जाता है।
104 एकड़ में फैला है मेला परिसरः ग्वालियर व्यापार मेला परिसर 104 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें बनी कच्ची-पक्की दुकानों में ग्वालियर के अलावा अन्य राज्यों से आए व्यापारी अपने उत्पादों को सजाते हैं। कुछ चबूतरे भी हैं, जिन पर बैठकर खाने-पीने वाले अपने सामान का विक्रय करते हैं। रेसक्रास स्थित व्यापार मेला मैदान को मध्यप्रदेश का प्रगति मैदान भी कहा जाता है। यहां होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का कैलेंडर हर वर्ग को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाता है। जिसमें कव्वाली, मुशायरा, कवि सम्मेलन ही नहीं चित्रकला स्पर्धा तक को भी शामिल किया जाता है।
ग्वालियर के मेले से बढ़ जाता है प्रदेश में व्यापारः व्यापारिक दृष्टिकोण से ग्वालियर व्यापार मेला काफी महात्वपूर्ण है। खरीदार और व्यापारियों के लिए शुरू किए आफर पूरे मप्र में लागू हो जाते हैं। अगर व्यापार मेले के आटोमोबाइल सेक्टर में सजे किसी कंपनी के शोरूम पर डिस्काउंट दिया जा रहा है तो वह आफर प्रदेश के हर शोरूम पर शुरू किया जाता है। इतना ही यहां लगने वाली प्रदर्शनी में सरकार की योजनाएं भी सामने आती हैं। इसका फायदा अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों से आए किसानों को मिलता है। वे योजनाओं को जान पाते हैं और फिर फायदा भी लेते हैं। कुछ साल तो ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण ने ग्रीष्म मेला भी शुरू कर दिया है, जो मई-जून में हर साल लगता है। बस कोरोनाकाल में बंद रहा।