
वरुण शर्मा, नईदुनिया ग्वालियर। मध्य प्रदेश के परिवहन मुख्यालय का ग्वालियर में कबाड़ा करके रख दिया गया है। हालात यह है कि पांच महीने बीत गए, लेकिन मप्र के परिवहन आयुक्त विवेक शर्मा अपने ही मुख्यालय में नहीं आए। यह खुद में अजब-गजब है। परिवहन अधिकारी या माननीय कुछ भी तर्क दें कि भोपाल कैंप आफिस है, ये सब बेमतलब है। सूने पड़े रहने वाले मुख्यालय में अब शिकायतकर्ताओं ने भी आना बंद कर दिया है।
एक और गजब यह कि परिवहन आयुक्त साहब की फाइलों को लाने-ले जाने के लिए जो 15 से 17 आरक्षक रखे गए हैं, उनसे रात की ड्यूटी भी कराई जा रही है। दो-दो की शिफ्ट में आरक्षकों को परिवहन मुख्यालय में तैनात करके रखा जाता है। ऐसा इसलिए कि परिवहन मुख्यालय में आउटसोर्स पर सुरक्षा गार्ड नहीं हैं। ऐसे में यह मजदूरी भी इन आरक्षकों से कराई जा रही है, जबकि यह इनका काम नहीं है। अलग-अलग बहानों से अटैच करके रखे गए इन आरक्षकों से यह काम लिया जा रहा है, जबकि मैदान में कार्रवाई के लिए परिवहन विभाग के पास हमेशा अमले की कमी का रोना लगा रहता है।
बता दें कि मप्र में ग्वालियर में परिवहन मुख्यालय के साथ ही अन्य मुख्यालय भी हैं। परिवहन मुख्यालय की भव्य इमारत भी हुरावली पहाड़ी पर बनी हुई है। पिछले पांच महीने से आयुक्त विवेक शर्मा ग्वालियर में मुख्यालय में नहीं आए हैं, उनका चैंबर सूना पड़ा हुआ है। इसके अलावा परिवहन मुख्यालय के एडिशनल कमिश्नर का पद भी खाली पड़ा हुआ है। यहां आइपीएस उमेश जोगा के बाद से किसी अधिकारी की स्थायी पोस्टिंग नहीं हुई है। आयुक्त के लिए पूरी फाइलें भोपाल तक दौड़ाई जाती हैं। इसके लिए एक-दो नहीं, आरक्षकों की पूरी टीम लगाई गई है जो विभाग के संसाधन व बल का दुरुपयोग जैसा है।
परिवहन मुख्यालय में आउटसोर्स के तहत सुरक्षा गार्ड अब नहीं हैं। बताया गया है कि इन सुरक्षा गार्डों की पूर्ति करने के लिए उन परिवहन आरक्षकों का इस्तेमाल किया जा रहा है जो परिवहन आयुक्त कार्यालय की फाइलों को लेकर भोपाल-ग्वालियर के बीच दौड़ लगाते हैं। रात में दो-दो आरक्षकों का रोटेशन रखा जाता है। इस तरह से पूरे माह काम चलाया जा रहा है। हकीकत में जिले हों या संभाग परिवहन विभाग, कार्रवाई के नाम पर हर बार बल कम होने का हवाला दिया जाता है।
ग्वालियर में परिवहन विभाग का मुख्यालय सिर्फ नाम का ही बचा है, सबकुछ भोपाल से ही हो रहा है। परिवहन आयुक्त जब नहीं आते तो उनके अधीनस्थ मुख्यालय में मन क्यों लगाएंगे यह जाहिर सी बात है। पूरे प्रदेश के लोग मुख्यालय में आते हैं, आयुक्त की पूछते हैं और लौट जाते हैं। अधिकारी और बाबू जवाब देते हैं कि साहब नहीं हैं।