
अनूप भार्गव, नईदुनिया, ग्वालियर। सर्दी-जुकाम या हल्के बुखार में एंटीबायोटिक लेने की आदत अब स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है। गजराराजा मेडिकल कालेज (जीआरएमसी) के जया आरोग्य अस्पताल में आईसीयू से लेकर सामान्य वार्ड और ओपीडी तक ऐसे कई मरीज सामने आए हैं, जिन पर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं। डॉक्टरों ने इस पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि बिना चिकित्सीय परामर्श के एंटीबायोटिक लेना इस समस्या को बढ़ा रहा है। जीआरएमसी के माइक्रोबायोलाजी विभाग ने कुल 1,954 मरीजों पर अध्ययन किया, इनमें 350 मरीज आईसीयू, 1127 सामान्य वार्डों और 477 मरीज ओपीडी के शामिल किए गए।
इन मरीजों के 2093 सैंपल की जांच की गई। अध्ययन के अनुसार आईसीयू के 17.3 फीसद मरीजों में एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) देखा गया, जबकि ओपीडी और सामान्य वार्ड के मरीजों में एएमआर का प्रतिशत इससे भी अधिक रहा।
ब्लड सैंपल से पहचाने गए जिन प्रमुख बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक का असर कम पाया गया, उनमें स्टेफाइलोकोकस आरियस, क्लेबसिएला न्यूमोनिया, एसिनेटोबैक्टर एसपी, एंटरोकोकस प्रजाति और साल्मोनेला टाइफी शामिल हैं। इनके खिलाफ एमिकासिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन, सेफ्ट्रिएक्सोन, अमोक्स-क्लैव, टीएमपी-एसएमएक्स, पिप्टाज और मेरोपेनेम जैसी दवाएं भी प्रभावी परिणाम नहीं दे सकीं। यूरिन सैंपल के अध्ययन में भी इसी तरह कम दवा-प्रभावशीलता सामने आई।
(एएमआर) वह स्थिति है, जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और परजीवी जैसे सूक्ष्मजीव दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। यानी एंटीबायोटिक उन पर असर करना बंद कर देती हैं। संक्रमण का उपचार कठिन हो जाता है और कई गंभीर मामलों में उपचार असंभव तक हो सकता है।
शहर से गांव तक लोग सर्दी-बुखार में भी एंटीबायोटिक ले रहे हैं। नतीजन उनमें रेजिस्टेंस बढ़ रहा है और सही एंटीबायोटिक चुनना मुश्किल हो रहा है। प्राध्यापक डा. केपी रंजन ने बताया कि कई मरीजों को तो आईसीयू में हाई-एंड एंटीबायोटिक देनी पड़ रही है।
अस्पताल में मरीजों का कल्चर टेस्ट किया जाता है, जिसकी रिपोर्ट आने में 48 घंटे लगते हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर तय किया जाता है कि कौन-सी एंटीबायोटिक असरदार है। लेकिन कई मरीज इतने रेजिस्टेंट मिलते हैं कि उन पर सामान्य दवाएं काम नहीं करतीं।