बलराम सोनी
ग्वालियर। नईदुनिया प्रतिनिधि
शायरी की दुनिया में ख्यातिलब्ध शायर, गीतकार और समाजसेवी डॉ नवाज देवबंदी किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे जितने उम्दा शायर हैं उतने ही बेहतर गजल लेखक। नवाज जमीन से जुड़ी शख्सियत हैं और बेटी पढ़ाओ-बेटी बढ़ाओं के बड़े पैरोकार भी । उनका मानना है कि बेटी को खूब को पढ़ाओ, क्योंकि बेटी ही बड़ी क्रांति लेकर आएगी। 1976 से लड़कियों की शिक्षा में जुटे डॉ नवाज देवबंदी उप्र के देवबंद में 25 गर्ल्स स्कूलों का संचालन कर रहे हैं। अखिल भारतीय मुशायरे में शामिल होने ग्वालियर आए डॉ नवाज ने 'नईदुनिया' कार्यालय में कविता, शायरी, परिवार, समाज, शिक्षा और सियायत जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा की।
कविता और शायरी खुद धर्म है, उन्माद ने नुकसान पहुंचाया
कविता खुद धर्म है। धर्म का पालन करने वाले संवेदनशील होते हैं। वे ही धर्म को जोड़े रखते हैं। कविता में धार्मिक उन्माद आने से बड़ा नुकसान हुआ है। ऐसी कविता की उम्र बहुत छोटी होती है। मोहब्बत और सांप्रदायिक सौहार्द की उम्र बड़ी होती है। कविता मोहब्बत है। इसे धर्म, जाति, देश-प्रदेश की सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता। जो लोग ऐसा करते हैं वे कातिल हैं।
नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम से हो गई गायब
शिक्षा के नए पाठ्यक्रमों से हम इंजीनियर, डॉक्टर और साइंटिस्ट तो बना रहे हैं, लेकिन एक अच्छा बेटा, पति, भाई और जिम्मेदार नागरिक नहीं बना पा रहे हैं। एक अच्छा बेटा, अच्छा इंजीनियर और डॉक्टर तो हो सकता है, लेकिन अच्छा इंजीनियर और डॉक्टर अच्छा बेटा होगा, इसकी गारंटी नये पाठ्यक्रमों में नहीं है। इसलिए आवश्यकता है कि हमारी बेसिक शिक्षा से गायब हुई नैतिक शिक्षा को शामिल किया जाए।
गीत के शब्दों के पारखी अब नहीं हैं
बॉलीवुड में शब्दों के पारखी डायरेक्टर अब नहीं है। इसलिए आजकल के गीतों की उम्र महीना दो महीना से ज्यादा नहीं होती। पहले के गीत आज भी उतनी ही शिद्दत के साथ सुने जाते हैं। ख्यात फिल्मकार के आशिफ ने अनारकली फिल्म की शूटिंग चार महीने सिर्फ इसलिए रोके रखी ताकि अकबर के डॉयलाग 'बांदी को दीवार में चुनवा दिया जाए' के जबाव में अनारकली का डायलॉग लेखक लिख नहीं पा रहे थे। जब यह डायलॉग 'जनाजे को रुखसत की इजाजत दी जाए ' आया तभी फिल्म की शूटिंग हुई। ऐसा नहीं है कि अच्छे गीतों को के कद्रदान नहीं हैं। लेकिन पारखी गायब हो गए हैं।
संस्कारों पर बोले- खुद को कितना छोटा करना पड़ता है, बेटे समझौता करना पड़ता है
समाज और परिवारों से संस्कार खत्म होते जा रहे हैं। चरण स्पर्श करने के लिए बड़ों को दबाव डालना पड़ता है। जबकि सच्चाई है कि हर झुका हुआ आदमी बड़ा हो जाता है। बड़ा बनने के लिए झुकना बहुत जरूरी है। जो जड़ से जुड़ा होता है तरक्की भी वही करता है। हमें ऐसे समाज की जरूरत है जिसमें बाप को नहीं बेटे को बाप से समझौता करना पड़े।
पैरेंटिंग- परिवार के लिए पांच मिनट नहीं
तरबियत यानी पैरेंटिंग परिवार में देखने को नहीं मिलती। आज पिता के पास बेटे की शिक्षा और कॅरियर के लिए 50 लाख रुपए देने को हैं, लेकिन पांच मिनट का समय नहीं है। पुराने जमाने में तरबियत स्कूल और परिवार में होती है, जो अब कहीं दिखाई नहीं देती।
शायरियां
मां के बारें
उसकी एड़ी पर्वत चोटी लगती है,
मां के पांव से जन्नत छोटी लगती है
सकारात्मकता
तुझे ये गम है कि फूलों के साथ कांटे हैं,
मुझे खुशी है कि कांटों के साथ फूल हैं
ऐसी-वैसी बातों से अच्छा है खामोश रहो,
या फिर ऐसी बात कहो जो खामोशी से अच्छी हो।
एक परिचय
उर्दू की बेहतरी के लिए किए बड़े
डॉ नवाज देवबंदी 2014 से 2017 तक उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी के निदेशक रहे। इस दौरान उन्होंने उर्दू की बेहतरी के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए।
1 - राजधानी लखनऊ में उर्दू आईएएस स्टडी सेंटर की शुरूआत की, जहां बच्चों को निःशुल्क खाना, रहना, किताबें और विशेषज्ञों से कोचिंग मिलती है।
2- शख्सियत सीरिज के तहत 20 ख्यातिप्राप्त शायरों, कवियों और लेखकों पर किताबें लिखवाईं।
3- देवबंद में उर्दू दरवाजे का निर्माण कराया। साथ ही अफसरों में उर्दू के उच्चारण के लिए क्लासेस शुरू कीं।