
डिजिटल डेस्क। सिख धर्म के अनुयायियों के लिए 5 नवंबर का दिन बेहद खास है। इस दिन पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से गुरु नानक जयंती मनाई जा रही है। इस साल गुरु नानक देव जी का पर्व मनाया जा रहा है। ग्वालियर में भी हर साल इस अवसर पर विशेष संगत का आयोजन किया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का ग्वालियर शहर से गहरा संबंध रहा है। ग्वालियर किले पर स्थित गुरुद्वारा ‘दाता बंदी छोड़’ का इतिहास इसी रिश्ते की अनोखी कहानी बयां करता है।
इतिहासकार लाल बहादुर सोमवंशी के अनुसार, गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पाकिस्तान के ननकाना साहिब में हुआ था। उस समय भारत न केवल बाहरी आक्रमणों का सामना कर रहा था, बल्कि सामाजिक और धार्मिक विभाजन भी गहरा था। ऐसे कठिन दौर में गुरु नानक देव जी ने मानवता, प्रेम और एकता का संदेश देने का संकल्प लिया और विश्व कल्याण के लिए यात्रा पर निकल पड़े।
गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के दौरान हजारों किलोमीटर का सफर तय किया। जब वे मध्य प्रदेश की धरती पर पहुंचे, तो सबसे पहले उनका आगमन ग्वालियर रियासत में हुआ। ग्वालियर के फूलबाग में उन्होंने लोगों को धर्म, समानता और सद्भाव का संदेश दिया। आज उसी स्थान पर ‘फूलबाग गुरुद्वारा’ स्थित है। बताया जाता है कि ग्वालियर से उन्होंने प्रदेश के अन्य क्षेत्रों भोपाल, खंडवा, ओंकारेश्वर और बैतूल का भी भ्रमण किया था।
ग्वालियर किले पर स्थित प्रसिद्ध ‘दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा’ का इतिहास गुरु नानक देव की शिक्षाओं से आगे बढ़ते सिख परंपरा से जुड़ा है। गुरु नानक देव जी के बाद सिख पंथ का विस्तार तेजी से हुआ। उनके उपदेशों से प्रेरित होकर छठे गुरु, गुरु हरगोविंद साहिब ने सिख समाज में आत्मबल और योद्धा भावना का संचार किया। वे शास्त्र और शस्त्र दोनों के ज्ञाता थे। उनकी बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर मुगल शासक जहांगीर ने उन्हें ग्वालियर किले में कैद कर लिया।
गुरु हरगोविंद साहिब करीब दो साल तीन महीने तक ग्वालियर किले की जेल में कैद रहे। इस दौरान वहां 52 हिंदू राजा भी बंदी थे। जब जहांगीर की तबीयत बिगड़ी और इलाज असफल होने लगा, तो दरबारी पीर ने उसे सलाह दी कि जिस धर्मगुरु को उसने कैद किया है, उसकी रिहाई ही उसके रोग का इलाज है।
जहांगीर ने आदेश तो दे दिया, लेकिन गुरु हरगोविंद साहिब ने शर्त रखी कि वे तभी रिहा होंगे जब बाकी 52 राजा भी मुक्त किए जाएं। उनकी यह शर्त स्वीकार की गई और वे सभी राजाओं के साथ कैद से बाहर निकले।
जिस ग्वालियर किले में गुरु हरगोविंद साहिब को बंदी बनाया गया था, आज वहीं ‘दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा’ स्थित है। हर वर्ष दिवाली और गुरु नानक प्रकाश पर्व के अवसर पर यहां हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। पूरे परिसर में कीर्तन, लंगर और संगत का आयोजन होता है।
ग्वालियर का यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा न केवल सिख इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, बल्कि यह धार्मिक सहिष्णुता, मानवता और आजादी के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है।