Gwalior Education News: ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। कोरोना के कारण साल 2020 के बाद अब 2021 का शैक्षणिक सत्र बिगड़ने की आशंका है। कोरोना की दूसरी लहर ने जहां देश-प्रदेश के साथ ही ग्वालियर में कहर मचा दिया है। वहीं कोरोना की आगामी तीसरी लहर बच्चों के लिए विशेषतौर पर खतरनाक बताई जा रही है। ऐसे में अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर काफी परेशान हैं। एक ओर कोरोना के खतरे के बीच वे स्कूल खुलने पर भी बच्चों को नहीं भेजना चाहते, वहीं आनलाइन पढ़ाई भी उन्हें रास नहीं आ रही है। परीक्षा में जनरल प्रमोशन देना भी बच्चों की नींव को कमजोर करता है। ऐसे में अभिभावक कुछ भी तय नहीं कर पा रहे हैं। वे केवल कोरोना की स्थिति को ठहर कर देखने (वेट एंड वॉच) की स्थिति में हैं। इस बार भी घर पर रहकर आनलाइन पढ़ाई कराने की स्थित बन रही है। प्राथमिक, माध्यमिक व 10वीं 12वीं के बच्चों की नींव कमजोर हो रही है।
जिन्होंने नहीं दी छमाही परीक्षा वे हो जाएंगे फेलः शासकीय कन्या पद्मा विद्यालय के प्राचार्य अशोक श्रीवास्तव ने बताया कि इस साल 10वीं के वे नियमित विद्यार्थी, जिन्होंने छमाही व रिवीजन टेस्ट नहीं दिया है, वे फेल हो जाएंगे। वहीं जिन विद्यार्थियों ने प्राइवेट फार्म भरा है, वे बिना परीक्षा के भी पास हो जाएंगे। 9वीं 11वीं को जनरल प्रमोशन दे दिया है, उनका रिजल्ट छमाही के आधार पर 31 मई तक जारी किया जाने वाला है।
10 वीं का भी छमाही, रिवीजन टेस्ट व आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर नंबर 31 मई तक बोर्ड आफिस पहुंचा दिए जाएंगे। जून में परिणाम घोषित होंगे। 12वीं की परीक्षा होनी है, जिसे फिलहाल टाल दिया गया है। परीक्षाओं का जून में होना प्रस्तावित है, जिसकी 20 दिन पहले पूर्व सूचना दी जाएगी।
शासन ने आनलाइन पढ़ाई का विकल्प निकाला है, लेकिन इससे बच्चों का गुणवत्तापूर्व पाठ्यक्रम शिक्षण नहीं हो सकता। स्कूल न जा पाने के कारण बच्चों का समग्र विकास रुक रहा है, क्योंकि स्कूल में वे अनुशासन सीखते हैं। फिजीकल एक्टिविटी होती हैं। डेढ़ साल में जो स्कैल गैफ बना है, उसे कीसी भी तरह पूरा करना मुश्किल होगा। जनरल प्रमोशन से बच्चों की नींव कमजोर हो रही है। बच्चे शैक्षणिक, सामाजिक, शारीरिक व मानसिक विकास में पिछड़ रहे हैं। एक ही समाधान है कि शासन शिक्षक व बच्चों का वैक्सीनेशन सुनिश्चित करे। 16 जून से स्कूल खुलते हैं, मगर इस साल तो यह असंभव लग रहा है। ओपी दीक्षित, सेवानिवृत्त वरिष्ठ व्याख्याता, डाइट ग्वालियर
बड़े स्कूल आनलाइन क्लास चला रहे हैं, मगर वह भी केवल इसलिए कि फीस ले सकें। बाकी स्कूलों में तो आनलाइन क्लास लेने की भी व्यवस्था नहीं हैं। ज्यादातर स्कूलों ने विषय विशेषज्ञ शिक्षकों को हटा दिया है। कई बच्चे आनलाइन कोचिंग कर रहे हैं, जिनके अभिभावक स्कूल की फीस जमा करना नहीं चाहते। कोरोना की तीसरी लहर के बीच कुछ अपवादों को छोड़कर माता-पिता अपने बच्चों को हरगिज स्कूल नहीं ही भेजेंगे। यह भी सच है कि किसी भी स्कूल के लिए संभव नहीं है, कि वो कोरोना गाइडलाइन का व्यवहारिक पालन करा सकें। बच्चों का स्वभाव नहीं होता कि वे शारीरिक दूरी रखें। शिक्षण सत्र बिगड़ गया, जिसका नुकसान बच्चों को हो रहा है। वैक्सीनेशन ही एक समाधान हैं। सीबीएससी ने 10वीं का परीक्षा परिणाम जून के बजाय जुलाई में घोषित करने का निर्णय लिया है। क्योंकि कई बच्चों ने आनलाइन परीक्षा नहीं दी। इन बच्चों की परीक्षाएं ली जाएंगी, जिसके बाद परिणाम घोषित किए जाएंगे।12वीं का तो कोई निर्णय ही नहीं हो पा रहा है। स्कूल काउंसिल का कहना है कि भलें परीक्षा देरी से हों, मगर परीक्षा कराएं। क्योंकि आगे की पढ़ाई 12वीं के परिणाम पर आधारित होती है। सुधीर सप्रा, अध्यक्ष, आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन मप्र
फिलहाल तो बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं, लेकिन छुट्टियां खत्म होने पर आनलाइन पढ़ाई शुरू करना भी कोई मतलब की नहीं हैं। आनलाइन क्लास में केवल नाम की पढ़ाई होती है, छोटे बच्चों को कुछ समझ नहीं आता। कोरोना की तीसरी लहर छोड़िये, हम अपने बच्चों को एक दम सामान्य स्थिति होने के 2-3 महीने तक भी स्कूल नहीं भेजेंगे। बच्चों के वैक्सीनेशन का भी अभी कुछ पता नहीं हैं। लोकेंद्र सिंह यादव, निवासी आनंद नगर (अभिभावक)