Gwalior Mahashivratri 2021: विजय सिंह राठौर, ग्वालियर नईदुनिया। ऋषि-मुनियों की तपो भूमि कहे जाने वाले ग्वालियर में कई सारे शिव मंदिर ऐसे हैं, जो लोगों की आस्था का विशेष केंद्र हैं। इनमें से कई शिवालय तो ऐसे हैं, जाे 500 सालों तक का इतिहास खुद में सहेजे हुए हैं। 11 मार्च को महाशिवरात्रि के अवसर पर शहर के सभी मंदिरों में भोले के भक्तों का मेला लगेगा। शिवरात्रि के लिए मंदिराें में आकर्षक विद्युत साज सज्जा की गई है। साथ ही मंदिराें में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुआें के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए हैं। सुबह से ही शिवजी का अभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने व विशेष पूजा अर्चना करने वालों की कतार लग जाएगी। सभी शिवालय बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठेंगे। वहीं गंगा आदि पवित्र नदियों से जल लेकर आए कांवड़िये भी भगवान शिव पर जल चढ़ाएंगे। शिवरात्रि पर दाेपहर बारह बजे गुप्तेश्वर महादेव मंदिर से भगवान शिव की बारात निकलेगी, जाे विभिन्न मार्गाें से हाेते हुए शाम चार बजे अचलेश्वर महादेव मंदिर पहुंचेगी। इसके बाद देर रात तक जागरण हाेगा।
यह रहेगी मंदिर तक आने के लिए व्यवस्थाः अचलेश्वर मंदिर आने वाले भक्तों को ललितपुर कालोनी की ओर जाने वाले मार्ग से गर्भ ग्रह में पहुंचने की व्यवस्था की गई है। नंदी द्वार से मंदिर के ट्रस्टी सदस्यों के लिए आने-आने जाने की व्यवस्था की गई है। सड़क द्वार पर लगाई गई ट्रे के माध्यम से ही श्रद्धालु दूध-गंगाजल आदि चढ़ा सकेंगे। अचलेश्वर न्यास ने प्रसाद वितरण करने वालों से अपील की है कि वे मास्क व सेनिटाइजर भी बांटे व सफाई का विशेष ध्यान रखें।
जाने मंदिराें का महत्वः
औरंगजेब ने किले से नीचे फेंक दिया था शिवलिंगः ग्वालियर दुर्ग (किले) पर शिवमंदिर में स्थापित शिवलिंग को 17वीं शताब्दी में आक्रांता औरंगजेब ने किले से नीचे फेंक दिया था, बाद में सिंधिया राजवंश ने किले की तलहटी से कुछ दूरी पर बंजारों के शिव मंदिर के पास कोटेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की।
सड़क निर्माण के दाैरान रास्ते से नहीं हटे अचलनाथः शहरवासियों की आस्था के केंद्र अचलेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास करीब 350 साल पुराना है। कहा जाता है कि सिंधिया स्टेट के समय जब सड़क निर्माण किया जा रहा था, तो शिवपिंडी को रास्ते से हटाने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन शिवलिंग नहीं हटा सके। तब से ही यह अचलनाथ के नाम से दूर-दूर तक विख्यात हुए। इन दिनों इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
ग्वालों ने खोजे गुप्तेश्वर महादेवः गुप्तेश्वर महादेव की खोज करीब पांच सौ साल पहले हुई थी। अमरावत पहाड़ पर आसपास के गांव के ग्वाले गाय चराने आते थे। यहां हर रोज किसी न किसी गाय का दूध निकाला जाता था। इस बात से चकित होकर बरागांव के ग्वालों ने खोज की तो उन्हें एक पिंडी नजर आई।
एक बार में हजार बार की पूजा का फल देते हैं हजारेश्वर महादेवः गेंडे वाली सड़क स्थित रामकुई पर बने इस मंदिर में शिवलिंग पर एक हजार शिवलिंग की आकृतियां हैं। मान्यता है कि कि हजारेश्वर महादेव के दर्शन करने पर एक हजार शिवलिंग के दर्शन होते हैं। एक बेलपत्र व एक लोटा गंगाजल चढ़ाने से एक हजार बार की पूजा का फल मिलता है।
भूतेश्वर महादेव मंदिरः शब्दप्रताप आश्रम के सामने स्थित दो सौ साल पुराने भूतेश्वर मंदिर के बारे में बताते हैं कि दो शताब्दी पहले यहां कब्रिस्तान था। राजौरिया परिवार के लोग वहां अपनी गाय चराने जाते थे। एक बार गाय चराते समय उनकी कब्रिस्तान के पास आंख लग गई। भगवान शंकर ने स्वप्न में आकर वहां मंदिर की स्थापना करने को कहा। इसके बाद सिंधिया राजवंश ने यहां मंदिर की स्थापना कराई।