- आर्थो सर्जरीनगजराराजा मेडिकल कालेज के प्रयास से किशोरियों को मिली नई जिंदगी
- 15 से 18 साल के किशारों की समस्या
अजय उपाध्याय . ग्वालियर। कूल्हे की नैक हड्डी गलने से किशोर-किशोरियों का चलना दूभर हो गया था। कोई बैसाखी के सहारे तो कोई डंडे के सहारे चलने को मजबूर था। इस उम्र में कूल्हा नहीं बदला जा सकता था, इस कारण कई किशोरियों की इस परेशानी के कारण शादी होनी भी मुश्किल हो रही थी। शहर व दूरदराज क्षेत्रों से जयारोग्य अस्पताल (जेएएच) पहुंचे ऐसे किशोरों की पीड़ा दूर करने जीआर मेडिकल कालेज (जीआरएमसी) के आर्थोपेडिक डाक्टरों ने वर्ष 2012 में रीकंस्ट्रक्शन आफ नेगलेक्टेड नैक आफ फीमर फ्रैक्चर पद्घति ईजाद की और अब तक करीब 40 मरीजों के कूल्हों का सफल आपरेशन किया गया है।
इस पद्घति से सर्जरी में मरीज के टखने के नीचे पतली फिबुला हड्डी को आवश्यकतानुसार निकाल लिया जाता है। उसे नैक हड्डी के स्थान पर डीएचएस (डायनामिक हिप स्क्रू) प्लेट (इंप्लांट) से बांध दिया जाता है। करीब दो माह बाद कुछ समय में वहां पर लगाई गई फिबुला हड्डी, नैक हड्डी के रूप में विकसित हो जाती है। इस पद्घति से किए गए आपरेशन के बाद किशोर बिना सहारे और दर्द के चलने-फिरने लगते हैं। अब बुजुर्गो को भी इस पद्घति के जरिए सर्जरी कर दर्द से मुक्ति दी जा रही है।
1 ज्वाइंट, नैक, फीमर आपस में जुड़े होते हैं।
2 जांघ की फीमर हड्डी और कूल्हे का ज्वाइंट के बीच में नैक हड्डी होती है। जिस पर शरीर का पूरा बजन आता है।
3 नैक हड्डी गलने पर फीमर व ज्वाइंट के बीच में खाली जगह हो जाती है जिससे व्यक्ति चल फिर नहीं पाता।
4.फिबुला की दो हड्डी को नैक वाली खाली स्थान पर लगा देते हैं। दो महीने के भीतर फीमर की नैक हड्डी तैयार हो जाती है।
ऐसेटाबुलम: कूल्हा ज्वाइंट, जो गढ्डे में फंसा होता है। इसे ऐसेटाबुलम कहा जाता है।।
फिमोरल हेड: यह हेड, ऐसेटाबुलम में फिट होता है, जिससे कूल्हे का ज्वाइंट बनता है।
फिमोरल नैक: नैक आफ फीमर यानी जांघ की हड्डी, जो गर्दन के आकार में होती है।
ग्रेटर ट्रोकेंटर: यह फीमर एक हिस्सा, इसे नैक आफ फीमर कहा जाता है।
फीमर: जांघ की हड्डी़ि
किशोर व वयस्क में फिबुला हड्डी से नैक फीमर तैयार की जाती है। क्योंकि आर्टीफिशियल कूल्हे की एक अवधि होती है जिसके बाद वह खराब हो जाता। पुन: कूल्हा बदलने में कई सारी समस्याएं होती है। इसलिए किशोर व वयस्कों में कूल्हा नहीं बदलने की रिस्क नहीं उठाते।
40 मरीजों के कूल्हों का आपरेशन किया।
इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशन के लिए भेजी गई पद्घित
जेएएच के अस्थि रोग विभाग के अध्यक्ष एवं जीआरएमसी के डीन डा. समीर गुप्ता बताते हैं कि कूल्हे की नैक हड्डी में चोट लगने से फ्रैक्चर हो जाता है। यदि समय पर इलाज नहीं कराया जाए तो धीरे-धीरे यह हड्डी गल जाती है। इस स्थिति में जेएएच के अस्थि रोग विभाग के डाक्टरों द्वारा ईजाद की गई पद्घति से सर्जरी करने से मरीजों को जीवन भर की परेशानी से निजात मिली है। रीकंस्ट्रक्शन आफ नेगलेक्टेड नैक आफ फीमर फ्रैक्चर पद्घति का किशोरों के बाद वयस्कों में प्रयोग सफल रहा है। कोरोनाकाल के दौरान वर्ष 2020-21 में इस पद्घति से दो बुजुर्गो के कूल्हे में नैक हड्डी का निर्माण करने में सफलता मिली है।
बुला एक ऐसी हड्डी है, जिसका शरीर में कहीं भी उपयोग कर लिया जाता है। नैक हड्डी गलने पर फिबुला हड्डी लगाकर प्राकृतिक हड्डी के रूप में काम लिया जाता है। इस पद्घति से आपरेशन शुरू कराने में डा. समीर गुप्ता का विशेष योगदान रहा है
डा. आरकेएस धाकड़, अधीक्षक जेएएच एवं आर्थोपेडिक सर्जन