Gwalior News: ...चोर की खाल में कई ईमानदार
Gwalior news शनिवार की शाम दाल बाजार स्थित नाट्य मंदिर में 'चेहरे नाटक की प्रस्तुति शुरू हुई।
By anil.tomar
Edited By: anil.tomar
Publish Date: Sun, 10 Jan 2021 07:30:00 AM (IST)
Updated Date: Sun, 10 Jan 2021 07:30:17 AM (IST)

- नाट्य मंदिर में शाम ढलते ही शुरू हुई 'चेहरे नाटक की प्रस्तुति
ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शनिवार की शाम दाल बाजार स्थित नाट्य मंदिर मंे 'चेहरे नाटक की प्रस्तुति शुरू हुई, जिसने समाज में रहने वाले कुछ लोगों के चेहरे से पर्दा उठाया। दर्शकों को कलाकारों ने मंचन करते हुए बताया, कुछ लोग हमेशा समाज के ठेकेदार बन रहते हैं, जबकि यह उनका असल चेहरा नहीं होता है। अगर उनका गंभीरता से अध्ययन किया जाए तो वास्तविक स्थिति सामने आए। यह नाटक समाज के ठेकेदारों को बेनकाब करता है। प्रस्तुति मप्र नाट्य विद्यालय भोपाल के रंग विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत श्रीरंग संगीत एवं कला संस्थान ने दी। लगभग एक घंटे के नाटक में तीस कलाकरों ने अभिनय किया। वे वही कलाकार हैं, जिन्होंने प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला में भाग लिया था। नाटक के निर्देशक विवेक नामदेव हैं, जबकि इसकी कहानी डा. शंकर शेष ने लिखी है। शुभारंभ मुख्य अतिथि विवेक शेजवलकर और विशिष्ट अतिथि संगीत विवि के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार नाहर ने किया। अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक चटर्जी ने की।
नाटक सत्य को समाज-सापेक्षित में विश्लेषित करता है
'चेहरे नाटक वर्तमान जीवन के क्रूर आंतरिक और सत्य को समाज-सापेक्षता में विश्लेषित करता है, साथ ही आखिर तक संवेदनात्मक पकड़ बनाए रखता है। मंचन से स्पष्ट हुआ चोर की खाल में कई ईमानदार हैं। इसी विषय को नाटक ने प्रभावी ढंग से उठाया है। वह अपनी ओर से कुछ नहीं कहता है, स्थिति दर स्थिति और विचार के झूठे चित्र उभरते चलते हैं। प्रत्येक चेहरा खुद अपनी वास्तविकता बयां करता है। नाटक की पात्र अध्यापक मुखरता से यथार्थ से दर्शकों का साक्षात्कार कराती हैं। शंकर शेष का यह नाटक समर्पित समाजसेवी भरोसे की मृत्यु के बाद उनकी लाश पर रोटियां सेकने वाले, झूठी हमदर्दी का लगातार ढोंग करने वाले भवानी सिंह और समाज के तथाकथित ठेकेदार परमानंद, सुखलाल, पंडित पर प्रश्न खड़ा करता है। कथासार की तरफ ध्यान दें तो समर्पित समाजसेवी भरोसे की मृत्यु के बाद अंत्येष्टि के लिए श्मशान में उपस्थित समाजसेवी तूफानी बारिश से बचने के लिए शव को लेकर एक खंडहर में आ जाते हैं। यहां बारिश से बचने और समय गुजारने की कहानी शुरू होती है। अनर्गल संवादों को समर्पित भवानी सिंह खुद को सत्ता का उत्तराधिकारी साबित करने में लगा रहता है। झूठी आस्था रखते हुए मृत्यु की गंभीरता बनाए रखने का ढोंग करता है। आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहता है। इससे हमारे समाज के अनेक विकृत स्वरूप प्रकट होते हैं और हर एक चेहरा खुद-व-खुद अपनी सधााई बयां करने लगता है। अंत्येष्टि में उपस्थित सदस्य आदर्श और सिद्धांतों को आत्मसात करने के साथ इनके प्रति आस्था रखने की बात कहते हैं। यहां अध्यापिका का चेहरा भी उजागर होता है, जो समाजसेवी नहीं वैश्या है। नाटक से पर्दा गिरता है आज और समाज के ठेकेदारों का चेहरा उजागर होता है।