
जोगेंद्र सेन, ग्वालियर Gwalior news । सूफी संतों के आशीर्वाद में तकदीर में लिखे को बदलने की ताकत होती है। यही कारण है कि हिंदुस्तान में सदियों से सूफियों की मजार व संतों की समाधियों पर लोगों को आस्था और विश्वास है। इनकी दहलीज पर सिर झुकाने लोग मजहब की सीमाएं लांघकर बगैर किसी भेदभाव के पहुंचते हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में गौरवशाली सिंधिया राजवंश के देवस्थान गोरखी में न किसी सूफी की मजार है और ना ही किसी संत की समाधि है। यहां आधी रोटी और अंगवस्त्र रखा है, जिसे महाराष्ट्र के बीड़ में बसने वाले महान सूफी मंसूर शाह बाबा ओलिया ने सिंधिया राजवंश के संस्थापक महादजी सिंधिया को अपने आशीर्वाद स्वरूप दिया था। आधी रोटी और अंगवस्त्र पिछले 200 वर्षों से सामाजिक सद्भाव व लोगों की आस्था विश्वास का केंद्र हैं। मंसूर शाह बाबा ओलिया सिंधिया राजवंश के कुलगुरू हैं। सिंधिया परिवार का मुखिया हर शुभ कार्य के अलावा श्राद्धपक्ष की द्वितीया को मनाए जाने वाले उर्स पर आशीर्वाद लेने के लिए जरूर आता है।
5 पीढ़ियों के आशीर्वाद के साथ दी थी आधी रोटी
वीडियो : मनीष शर्मा
राज योगी महीपति नाथ सच्चिदानंद ढोली बुआ महाराज ने बताया कि राजयोगी महीपति नाथ को महाराज दौलतराव सिंधिया ने राजगुरू की उपाधि दी थी। ढोली बुआ महाराज ने बताया कि बीड़ महाराष्ट्र के सूफी मंसूर शाह ओलिया ने खुश होकर सिंधिया राजवंश के संस्थापक महादजी सिंधिया को आधी रोटी व अपना अंगवस्त्र देते हुए आशीर्वाद दिया था कि पांच पीढ़ी तक शासन रहेगा।
इसके बाद जब तक इसकी पूजा-अर्चना होती रहेगी, सिंधिया राजवंश का सम्मान बरकरार रहेगा। महादजी सिंधिया ने सूफी संत के इस आशीर्वाद को गोरखी स्थित महल में अपने देवालय में पूजा-अर्चना के लिए प्रतिष्ठित कर दिया। यह स्थान आज गोरखी देवस्थान के नाम से जाना जाता हैं। महादजी सिंधिया के बाद दौलतराव सिंधिया, जनकोजीराव सिंधिया, प्रथम माधवराव सिंधिया और अंतिम महाराज जयाजीराव सिंधिया हुए। पांच पीढ़ी के बाद सभी स्टेट का भारत में विलय हो गया।
ऐसे होती है पूजा-अर्चना
सिंधिया परिवार का मुखिया हर शुभ कार्य के पहले गोरखी में राजशाही परंपरा अनुसार पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। शाम की आरती पुराने वाद्ययंत्रों के साथ की जाती है। बाबा का उर्स महाराष्ट्र (बीड़) में दीपावली के समय मनाया जाता है। श्राद्धापक्ष की द्वितीया को प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले उर्स में बेलपत्रों का पिरामिड बनाया जाता हैं। इसे फूलों से ढका जाता है। सिंधिया परिवार का मुखिया आज भी उर्स में आते हैं।
वीडियो : मनीष शर्मा
सूफी लिबास में पूजा-अर्चना कर मोर पंख से बाबा की सेवा करते हैं। लोवान की धुनी दी जाती हैं। सिंधिया परिवार का मुखिया बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए झोली फैलाकर बैठते हैं। चमत्कार के रूप में फूल मुखिया की झोली में आशीर्वाद स्वरूप गिरने के बाद ही पूजा से उठते हैं। कई बार आशीर्वाद के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इस बार 42 मिनिट में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आशीर्वाद मिला था।
कब मिला था आशीर्वाद
देवस्थान में पूजा-अर्चना करने वाले मधुकर पुरंदरे बताते हैं कि महादजी सिंधिया युद्ध के लिए गए थे। उनके घायल होने की सूचना मिलने पर महारानी मैना विचलित थीं। वह बीड़ (महाराष्ट्र) के सूफी मंसूर शाह बाबा ओलिया के दरबार में पहुंची। बाबा ने कहा तेरी रोली(सुहाग) जीवित हैं और जल्दी आ जाएगा। तुम यहीं इंतजार करो। पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठाओं को भारी जन-धन की हानि हुई थी।
महादजी सिंधिया भी घायल हो गए थे। मुस्लिम नौजवान राणे खां मसक(पानी भरकर ले जाने वाली वस्तु) के बीच छिपाकर घायल महादजी सिंधिया को अपने घर ले गया और उनकी जान बचाई। राणे खां ही महादजी को सूफी मंसूर शाह बाबा ओलिया के स्थान पर ले गया, जहां महारानी उनका इंतजार कर रही थीं। उसी समय महादजी सिंधिया को आधी रोटी बाबा ने आशीर्वाद स्वरूप दी थी। बाबा के ग्वालियर आने का कोई उल्लेख किताबों में नहीं मिलता हैं, उनके वंशज जरूर आज भी ग्वालियर में हैं। उन्हें श्रीसाहब के नाम से जाना जाता है।