ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। ग्वालियर व्यापार मेला करीब 104 एकड़ में विशाल परिसर में फैला हुआ है। इसमें 2 लाख वर्ग फीट क्षेत्र में पार्क और बगीचे हैं। साथ ही एक लाख 80 हजार वर्ग फीट में हरियाली पट्टी है। मेले के व्यापारिक क्षेत्र में भव्य पारंपरिक कट स्टोन वास्तु शिल्प में निर्मित भव्य द्वारों की मदद से अष्टकोणीय सेक्टरों में विभाजित हैं। पारंपरिक पाषाण वास्तु शिल्प में बनी 1500 छोटी-बड़ी दुकानें, 250 चबूतरे और 23 छत्रियां मेले की खूबसूरती बढ़ाती है। पशु मेले के लिए एक विशाल खुला क्षेत्र है तो दूसरी ओर प्रदर्शनियों के लिए भी परिसर बनाया गया है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया उद्यान में बना शहीद स्तंभ 33 फीट ऊंचा और 10 फीट चौड़ा है। स्तंभ में 15 लाल एवं 7 सफेद पत्थरों का उपयोग किया गया है। मेले के दंगल में एक समय शहर के पहलवान ने विश्वविख्यात गामा पहलवान को पटखनी दी थी। कुश्ती को प्रोत्साहित करने के लिए मेले में होने वाली दंगल प्रतियोगिता में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के पहलवान भाग लेते हैं।
आजादी के पहले से शुरु हुआ व्यापार मेला भारत स्वतंत्र होने बाद इसका स्वरुप और भी विस्तृत हो गया। 23 अगस्त 1984 को पहली बार ग्वालियर व्यापार मेला का राज्य स्तरीय व्यापार मेला का दर्ज मिला। व्यापार मेला में सन 1985 में ग्वालियर व्यापार मेला का सेल टेक्स में छूट दी गई। शिल्पकारों को प्रोत्साहन देने के लिए पहली बार शिल्प बाजार की शुरुआत 25 दिसंबर 1988 से 25 जनवरी 1989 तक 11-11 दिन के तीन चरणों में कला मंदिर के पास आयोजित किया गया। अब शिल्प बाजार एक चरण में 10 दिन के लिए लगाया जाने लगा है। यहां देश भर के शिल्पी आते हैं। वर्ष 1996 में ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण बनाया गया।ग्वालियर के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने ग्वालियर चंबल संभाग को अकाल से ऊबारने के लिए किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए पशुमेला का आयोजन पहली बार सागर ताल पर 1905 में शुरू किया था। तब यहां मेला में दस हजार पशुओं का क्रय विक्रय हो जाता था। इससे पहले किसान केवल इंदरुखी के मेला में ही पशुओं का व्यापार करने जाते थे। उस वक्त खेती किसानी के लिए किसान बैल खरीदने के लिए मेला का इंतजार करते थे। मेला का विस्तार होने लगा तो सागर ताल पर जगह कम पड़ने लगी। मेला में खाने पीने से लेकर लाठी-डंडे, तलबार,भाला आदि का व्यापार करने के लिए व्यापारी आने लगे थे। तब जीवाजी राव सिंधिया व्यापार मेला को मेलाग्राउंड में लेकर आए। पहली बार पशु मेला का आयोजन 1919 में मेला ग्राउंड के 104 एकड़ के परिसर में आयोजित किया गया। वर्ष 1919 में जब ग्वालियर व्यापार मेला का आयोजन मेला ग्राउंड में हुआ तो उस समय मेला कर से जो आय हुई। उस आय को मेला कमेटी ने तत्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया के समक्ष रखी। जिसपर महाराजा ने कहा कि मेला आय का साधन नहीं है यह किसानों की समृधि के लिए किया जाने वाला एक आयोजन है। इसलिए जो भी आय हुई वह मेला की भव्यता बढ़ाने के लिए उपयोग की जाए। इसके बाद व्यापार मेला की भव्यता के लिए मिलने वाले कर से निर्माण कार्य शुरू किए।