नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। ड्यूटी के दौरान नशे की हालत में सोते हुए मिले आरक्षक की सेवा बहाल करने संबंधी याचिका को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि नशे की हालत में ड्यूटी करना कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। कोर्ट ने ड्यूटी के दौरान इंटरनेट मीडिया की लत को भी गंभीर चिंता माना है। साथ ही इसके लिए निगरानी तंत्र विकसित करने को कहा है।
पुलिस विभाग में आरक्षक पदस्थ रहे याचिकाकर्ता अशोक कुमार त्रिपाठी वर्ष 2007 में एक बंगले पर सुरक्षा में तैनात था। चार अगस्त, 2007 की सुबह 6.30 बजे जब अधिकारी निरीक्षण के लिए पहुंचे तो अशोक कुमार सोते हुए मिला। जब उसे जगाया गया तो वह नशे में प्रतीत हुआ था। उसे तत्काल प्रभाव से निलंबित कर उसकी मेडिकल जांच कराई गई थी। डॉक्टर ने विभागीय जांच में बयान दिया था कि आरक्षक की सांस में शराब की गंध पाई गई है।
इसके बाद पुलिस अफसरों ने उसे बर्खास्त किया था। इसके बाद अशोक कुमार ने कोर्ट का रुख किया था। कोर्ट ने कहा- वर्दी में नशा करना गंभीर अनुशासनहीनता याचिका को हाई कोर्ट की डबल बेंच ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पुलिस जवान ड्यूटी के दौरान नशे में पाया गया था। पुलिस वर्दी में रहते हुए नशा करना गंभीर अनुशासनहीनता है। ऐसे व्यक्ति के साथ कोई भी सहानुभूति नहीं दिखाई जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आजकल नशे के साथ-साथ ड्यूटी में लापरवाही की वजह इंटरनेट मीडिया की लत भी नजर आती है। ड्यूटी के दौरान पुलिसकर्मी इंटरनेट मीडिया का उपयोग न करें, इसके लिए पुलिस विभाग को निगरानी तंत्र विकसित करना चाहिए।