नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। M.Ed परीक्षा में अनुत्तीर्ण (ATKT) घोषित होने के बाद शिक्षकों के एक समूह ने जब जीवाजी विश्वविद्यालय (Jiwaji University Gwalior) से राहत न मिलने पर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो उन्हें वहां से भी निराशा हाथ लगी।
हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय के नियमानुसार M.Ed जैसे सेमेस्टर सिस्टम कोर्स में रिवैल्यूएशन (Re-evaluation) की व्यवस्था नहीं है। कोर्ट ने विश्वविद्यालय के पक्ष को मजबूत और याचिकाकर्ताओं के आरोपों को असिद्ध माना।
मध्यप्रदेश सरकार की योजना के तहत ऑनलाइन माध्यम से एमएड कर रहे कुछ शिक्षक, ग्वालियर के शासकीय पीजी कॉलेज ऑफ एजुकेशन में नामांकित थे। इन्होंने पहला और दूसरा सेमेस्टर सफलतापूर्वक पास कर लिया था, लेकिन तीसरे सेमेस्टर (नवंबर-दिसंबर 2024) का परिणाम आने पर 25 में से 15 छात्रों को एटीकेटी दे दी गई।
छात्रों को यह निर्णय हैरान करने वाला लगा और उन्होंने आंसर शीट के मूल्यांकन में लापरवाही का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि कुछ प्रश्न सिलेबस से बाहर थे, मूल्यांकन मनमाने ढंग से हुआ और यूनिवर्सिटी ने कॉपी की फोटोकॉपी देने से इनकार किया।
हाई कोर्ट की एकलपीठ ने विश्वविद्यालय और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुनने के बाद निम्न बिंदुओं पर फैसला दिया-
पेटीशनर्स की मुख्य आपत्तियां थीं कि प्रश्न 1 सिलेबस से आंशिक रूप से बाहर था। वहीं, प्रश्न 2 में हिंदी और अंग्रेजी वर्जन में मतभेद था, जिससे भ्रम हुआ। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन मनमाने तरीके से किया गया और यूनिवर्सिटी ने मांग के बावजूद कॉपी की प्रतिलिपि नहीं दी, सिर्फ कुछ समय के लिए देखने की अनुमति दी।
छात्रों ने मांग की कि उत्तर पुस्तिकाओं की दोबारा जांच किसी स्वतंत्र जांचकर्ता से करवाई जाए। गलत प्रश्नों पर बोनस अंक दिए जाएं। साथ ही, मानसिक तनाव और शैक्षणिक नुकसान के लिए मुआवजा प्रदान किया जाए।
यूनिवर्सिटी की ओर से अधिवक्ता राहुल यादव ने कोर्ट में दलील दी कि छात्रों द्वारा लगाए गए आरोप निराधार हैं और नियमानुसार उन्हें सिर्फ री-टोटलिंग की सुविधा उपलब्ध है। विश्वविद्यालय की प्रक्रिया पारदर्शी और नियमानुसार थी।