नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। एक पल के लिए भी अगर आंखों के सामने अंधेरा छा जाए, तो इंसान बेचैन हो उठता है। सोचिये, जब यह अंधेरा जिंदगी भर के लिए आंखों में बस जाए तो क्या हाल होता होगा। सेंवड़ा निवासी रचना (30) की जिंदगी में भी ऐसा ही अंधेरा उतर आया था।
दोनों आंखों की रोशनी चली गई, तो पति ने भी साथ छोड़ दिया, लेकिन जब सबकुछ खत्म सा लग रहा था, तभी एक नई रोशनी की किरण उसकी जिंदगी में आई हजीरा सिविल अस्पताल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुषमा भार्गव के रूप में।
रचना को मोतियाबिंद ने पूरी तरह से दृषिहीन कर दिया था। बिना ऑपरेशन रोशनी लौटने की कोई उम्मीद नहीं थी। ऐसे में डॉक्टर सुषमा भार्गव ने जोखिम लेते हुए एक साथ दोनों आंखों की सर्जरी (लेंस प्रत्यारोपण) करने का फैसला लिया।
यह ऑपरेशन खास इसलिए भी रहा क्योंकि पहली बार एक मरीज की दोनों आंखों का एक साथ ऑपरेशन किया गया और वह भी पूरी तरह सफल रहा। मंगलवार को रचना को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अस्पताल से वह खुद चलकर बाहर निकली अपनी खोई हुई रोशनी के साथ।
रचना की मां को जब बेटी की हालत का पता चला तो वह उसे लेकर शुक्रवार को हजीरा स्थित सिविल अस्पताल पहुंचीं। वहां डॉ. सुषमा भार्गव ने परीक्षण कर तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी। स्वजन की सहमति मिलने के बाद डॉक्टर ने बिना देर किए ऑपरेशन किया। ऑपरेशन टीम में नेत्र चिकित्सा सहायक राजेश गुप्ता सहित अन्य स्टाफ मौजूद था।
आंखों की रोशनी चली जाने के बाद रचना के पति ने उसे छोड़ दिया था। वह अकेली, अंधेरे और मायूसी में जी रही थी। मगर मां ने बेटी का हाथ नहीं छोड़ा और उसे उम्मीद की किरण तक लेकर आईं। आज रचना की आंखों में फिर से उजाले हैं और दिल में नए जीवन की उम्मीद।