
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। श्योपुर जिले की 79 वर्षीय मिथलेश श्रीवास्तव पिछले पचास सालों से अपने हक की पेंशन और रिटायरमेंट लाभों के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रही हैं। यह मामला अब इतना पुराना हो चुका है कि खुद मप्र हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा, ‘ये केस तो हमारी और आपकी उम्र से भी पुराना है, अब और देरी नहीं होनी चाहिए।’ कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि यदि अगली तारीख तक आदेशों का पालन नहीं किया गया, तो श्योपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को स्वयं कोर्ट में उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देना होगा।
अगली सुनवाई नवंबर के दूसरे सप्ताह में होगी। 23 साल की सेवा के बाद इस्तीफा, फिर कानूनी लड़ाई मिथलेश के पति शंकरलाल श्रीवास्तव पुलिस विभाग में आरक्षक (कांस्टेबल) के पद पर थे। उन्होंने 23 साल की सेवा के बाद नवंबर 1971 में इस्तीफा दे दिया था। 24 नवंबर 1985 को उनकी मृत्यु हो गई।
पति की मृत्यु के बाद मिथलेश ने पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों के लिए विभाग में आवेदन किया, लेकिन जब सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने कोर्ट में मुकदमा दायर किया। 2005 में फैसला, फिर भी नहीं मिला लाभ लंबी सुनवाई के बाद 13 अगस्त 2005 को सिविल कोर्ट ने मिथलेश के पक्ष में फैसला सुनाया और पुलिस विभाग को उन्हें सभी लाभ देने के निर्देश दिए।
परंतु निर्णय के 20 साल बाद भी आदेशों का पूर्ण पालन नहीं हुआ। विभागीय प्रक्रियाओं और अपीलों के चलते मामला बार-बार एक अदालत से दूसरी अदालत तक भटकता रहा। सिर्फ 33 रुपए प्रतिमाह की प्रोविजनल पेंशन वर्तमान में मिथलेश श्रीवास्तव को मात्र 33 रुपये प्रतिमाह प्रोविजनल पेंशन दी जा रही है, जो किसी प्रतीकात्मक सहायता से अधिक नहीं कही जा सकती। इतनी छोटी राशि में जीवनयापन असंभव है, इसके बावजूद वे न्याय पाने की उम्मीद में लड़ाई जारी रखे हुए हैं।
