नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। गर्मागर्म कचौड़ियों को देखकर सभी के मुंह में पानी आ ही जाता है। मौके बेमौके कभी भी कचौड़ियों का लुत्फ उठाया जा सकता है। ऐसे में अगर लाजवाब कचौड़ी मिल जाए, तो खाते ही दिल खुश हो जाता है।
यूं तो ग्वालियर में कई जगहों पर कचौड़ी मिलती है, लेकिन अगर आपने रेलवे स्टेशन के बाहर मिलने वाली कचौड़ी, सब्जी के साथ खा ली तो दीवाने हो जाएंगे। हम बात कर रहे हैं ताराचंद कचौड़ी की।
ताराचंद कचौड़ी का नाम और स्वाद शहरवासियों के लिए नया नहीं है। इसका स्वाद 75 साल से शहर की जुबां पर चढ़ा हुआ है। खासतौर पर वे भी इन कचौड़ी के दीवाने बने हुए हैं, जिन्हें आज हम उम्रदराज कहते हैं।
ताराचंद कचौड़ी की दुकान पर सुबह-शाम बच्चे, बूढ़े और जवानों की कतारें स्वाद लेने के लिए लगी हुई नजर आती हैं। ऐसा लगता है मानो यहां मिलने वाली खस्ता कचौड़ी का स्वाद शहरवासियों को अपनी ओर सम्मोहित करता हो। यहां पर कचौड़ी के अलावा समोसा, बेड़ई, इमरती, जलेबी का भी स्वाद मौजूद है।
कचौड़ी बेचने वाले 60 वर्षीय नरेश अग्रवाल ने बताया कि दुकान उनके पिता जी के नाम पर है, जिन्होंने इसकी शुरुआत करीब 75 साल पहले की थी। उन्होंने बताया कि शहर में पहले दो ही दुकान थीं। एक कंपू पर एसएस कचौड़ी वाला और दूसरी रेलवे स्टेशन पर ताराचंद कचौड़ी। अग्रवाल ने कहा कि स्वयं के हाथ के पिसे मसालों का उपयोग करता हूं। इसलिए अन्य कचौड़ी के मुकाबले स्वाद बढ़ जाता है।
नरेश अग्रवाल बताते हैं कि कचौड़ी सहित समोसा, बेड़ई, इमरती और जलेबी बनाने के लिए सुबह से ही लग जाते हैं। इसके बाद सुबह सात बजे से कचौड़ी के साथ अन्य सामान को बेचना शुरू करते हैं। यह सिलसिला शाम सात बजे तक चलता है। कचौड़ी का रेट 20 रुपए प्लेट है। इसके अलावा समोसा भी इसी रेट में मिलता है।