
Loard Jagannath Kuleth: ग्वालियर,(नईदुनिया प्रतिनिधि) कुलैथ में प्राचीन भगवान जगन्नाथ का भक्तों की आस्था का विश्वास का केंद्र है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र व बहन सुुभद्रा के साथ विराजित हैं। मंदिर में अपनी मौजूदगी का प्रत्यक्ष प्रमाण देने यहां हर सोमवार को स्वत: चावल के भरे घट फटने के बाद भी भोग लगता है। पुरी की पंरपरा और मान्यता के अनुसार कुलैथ में भगवान जगन्नाथ ज्वर से पीड़ित होंगे। सोमवार को सात दिन के लिए मंदिर के पट बंद हो जाएंगे। पुरी में भगवान जगन्नाथ एक पखवाड़े के लिए एकांतवास में रहते हैं। 19 जून को मंदिर के पट खुलने पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन भक्तों को होंगे। दूसरे दिन 20 जून को दो दिवसीय भगवान जगन्नाथ की परंपरागत रथ यात्रा गांव में भ्रमण के लिए निकलेगी। रथयात्रा वार्षिक उत्सव के रूप में निकाली जाती है।
जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर की दूरी पर कुलैथ गांव में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। भगवान जगन्नाथ की प्राण प्रतिष्ठा 1846 में हुई थी। मंदिर के पुजारी किशोरी लाल श्रीवास्तव और भानु श्रीवास्तव ने बताया उनके बाबा सांवलदास नौ वर्ष के थे तब माता-पिता का निधन हो गया था। उनके लालन-पालन को लेकर गांव चर्चा हो रही थी। गांव के लोगों ने पूछा कि माता-पिता कहां हैं तो उन्होंने कहा वो तो पुरी जगन्नाथजी की शरण में चले गये हैं। उसके बाद दंडवत करते हुये वे सात बार पुरी गए। उसके बाद उन्हें स्वपन हुआ कि तुम्हें अब यहां आने की जरूरत नहीं हैं। मैं स्वयं तुम्हारे घर में विराजित हूं। कुलैथ में मेरा मंदिर बनवाएं। बाबा मूर्ति पूजा के उपासक नहीं बनना चाहते थे, दो वर्ष तक वे भटकते रहे। इसके बाद फिर उन्हें मंदिर बनाने का आदेश हुआ। बाबा ने पूछा कि इसका क्या प्रमाण होगा कि आप मंदिर में विराजमान हैं।
स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने बताया एक के ऊपर सात मिट्टी के घड़ों चावल बनने के लिए रखना। उसके बाद नीचे अग्नि प्रज्वलित करना। सबसे पहले सबसे ऊपर रखा घड़े के चावल बनेंगे। उसके बाद क्रमश: यह क्रम चलेगा। इन सातों को घड़ों को विग्रह के सामने रखना, जो कि स्वत: चार भागों में विभाजित हो जाएंगे। उसी चावल का भोग भगवान जगन्नाथ को लगता है। यह चमत्कार प्रति सोमवार को होता है। इसके दर्शन के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं।