
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। कभी-कभी कुछ मुकदमे ऐसे होते हैं जो न सिर्फ कानूनी व्यवस्था की खामियों को उजागर करते हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि सच कितनी मुश्किलों से अपनी राह बना पाता है। ऐसा ही एक मामला ग्वालियर में सामने आया, जिसने पुलिस, कोर्ट और समाज तीनों को झकझोर दिया। यह मामला एक प्रेमिका की रहस्यमय मौत से जुड़ा था, जिसमें प्रेमी को पहले हत्यारा घोषित किया गया, पुलिस टीम को इनाम मिला और आखिर में उसी जांच पर न्यायालय ने सवाल खड़े करते हुए विवेचना अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए। इस केस को हाई कोर्ट अधिवक्ता मोहित भदौरिया ने अपने करियर का सबसे 'यादगार मुकदमा' बताया।
उन्होंने बताया कि कैसे एक निर्दोष युवक को केवल परिस्थितिजनक साक्ष्यों के आधार पर हत्या के आरोप में जेल भेज दिया गया और तीन साल की जेल काटने के बाद आखिरकार अदालत ने उसे दोषमुक्त करार दिया। यह था मामला: यह घटना थाना झांसी रोड क्षेत्र की है। फरवरी 2021 में शहर के साइंस कॉलेज के पास स्थित एक हास्टल के सेप्टिक टैंक से एक महिला का अधजला शव मिला था। मृतका तलाकशुदा थी और कुछ समय से एक युवक के संपर्क में थी। पुलिस ने जांच की और जल्दबाजी में यह निष्कर्ष निकाल लिया कि हत्या उसी युवक यानी प्रेमी ने की है। तत्कालीन एसपी ने इस "सफल खुलासे" पर थाना प्रभारी और जांच टीम को 10-10 हजार रुपये इनाम देने की घोषणा कर दी।
मीडिया में पुलिस की खूब वाहवाही हुई, मगर असली कहानी कुछ और थी। मृतका की मां ने नौ फरवरी 2021 को बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी। 11 दिन बाद, 20 फरवरी को, झांसी रोड क्षेत्र में अधजला शव मिलने की खबर आई। शव की शिनाख्त मुश्किल थी, लेकिन पुलिस ने प्रेमी को ही आरोपित बना दिया। दो दिन बाद ही युवक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। मामला जब न्यायालय पहुंचा तो जांच की परतें खुलने लगीं और हर गवाही, हर दस्तावेज, हर रिपोर्ट पुलिस की कहानी को कमजोर करती गई।
अधिवक्ता मोहित भदौरिया ने अदालत में इस केस की बारीकियों को सामने रखा। उन्होंने बताया कि यह मामला पूरी तरह परिस्थितिजनक साक्ष्यों पर आधारित था- कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं, कोई ठोस सबूत नहीं। एफएसएल रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ। पुलिस ने कहा था कि आरोपित के कपड़ों से मृतका के बाल मिले हैं, जबकि एफएसएल रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि बाल मृतका के नहीं थे। पुलिस का दूसरा दावा था कि आरोपित ने हत्या इसलिए की क्योंकि मृतका शादी के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन मृतका के भाई ने कोर्ट में इस दावे को झुठला दिया, यह कहते हुए कि ऐसी कोई बात परिवार में कभी नहीं सुनी गई। तीसरा "सबूत" था सीसीटीवी फुटेज। इसमें आरोपित को बाइक पर एक बोरा ले जाते हुए दिखाया गया था। पुलिस का दावा था कि बोरे में युवती का शव था। मगर जब जांच में यह साबित नहीं हुआ कि आरोपित उस दिन मृतका के घर गया भी था, तो यह तर्क भी धराशायी हो गया।
लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने साफ कहा कि सिर्फ परिस्थितिजनक सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय ने पाया कि पुलिस ने विवेचना बेहद लापरवाही से की, जिससे वास्तविक हत्यारे का कोई सुराग तक नहीं मिल सका। अदालत ने न सिर्फ आरोपित युवक को निर्दोष घोषित करते हुए बरी किया, बल्कि यह भी कहा कि पुलिस ने जल्दबाजी में जांच पूरी कर निष्कर्ष निकाल लिया, जिससे न्याय की प्रक्रिया प्रभावित हुई। इतना ही नहीं, कोर्ट ने उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई के निर्देश दिए जिन्हें इस मामले में सफल खुलासे के लिए इनाम मिला था।
अधिवक्ता मोहित भदौरिया के अनुसार, यह मुकदमा इसलिए यादगार रहा क्योंकि इसमें न्यायालय ने न केवल एक निर्दोष को न्याय दिया बल्कि यह भी संदेश दिया कि सच्चाई को साबित करने में समय लगता है, लेकिन वह सामने जरूर आती है। यह मुकदमा मेरे लिए एक सबक था कि परिस्थितिजनक साक्ष्यों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। इस केस ने यह सिखाया कि जब तक हर तथ्य की तह तक नहीं जाया जाए, तब तक न्याय अधूरा रहता है।