दतिया के पीतांबरा मंदिर में दशर्न के लिए विभिन्न राज्यों और विदेश से आते हैं हजारों श्रद्घालु
Maa Pitambara News: अजय तिवारी.ग्वालियर। राज सत्ता की अधिष्ठात्री मां बगुलामुखी की नगरी दतिया का देश में एक अलग स्थान है। जिसे भक्तों की आस्था, श्रद्घा और मंदिरों के कारण मिनी वृंदावन भी कहा जाता है। पीतांबरा एक सिद्घपीठ है। धार्मिक मान्यता है कि पीतांबरा माई (मां बगुलामुखी) के दर्शन मात्र से ही शत्रु और कष्टों का विनाश हो जाता है। इसके अलावा कई अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं भी इस शक्तिपीठ से जुड़ी हुई हैं। यहां महाभारत कालीन वनखंडेश्वर महादेव और माता पार्वती एक विचित्र विग्रह धूमावती माई के रूप में भी विराजित हैं। इस मूर्ति के बारे में मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं इसके दर्शन नहीं करती हैं। इसी तरह दतिया से 15 किलोमीटर दूर उनाव में सूर्य मंदिर है, जिसे उनाव बालाजी के नाम से जाना जाता है। यहां पहुंज नदी में स्नान करने के बाद सूर्य मंदिर में दर्शन करने से चर्म रोग से मुक्ति मिलने की मान्यता है। इसके बदले श्रद्घालुजन द्वारा देसी घी चढ़ाने की परंपरा है।
श्रद्घा, आस्था और विश्वास के स्वरूप दतिया नगर में विराजित मां पीतांबरा मंदिर पर देश के विभिन्न राज्यों और विदेश से हजारों श्रद्घालु दशर्न करने आते हैं। प्रतिवर्ष में आने वाली चार नवरात्रि में तो यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। मां पीतांबरा कि मूर्ति की स्थापना वर्ष 1935 में स्वामी जी महाराज ने की थी। यहीं शक्ति पीठ में स्थित पार्वती के एक अन्य स्वरूप धूमावती माई की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा वर्ष 1978 में की गई थी। बताया जाता है कि यहां पर धूमावती माई के कोई भी सुहागिन महिला दर्शन नहीं करती है, पीतांबरा माई और धूमावती माई दोनों को ही पार्वती का स्वरूप माना गया है। पीतांबरा मंदिर की मान्यता है कि इस शक्ति पीठ पर जो भी दर्शन कर जाता है उनके शत्रु, दुख और कष्टों का निवारण दर्शन मात्र से हो जाता है। यही कारण है कि राजनेता, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियां और उद्योगपति सहित देशभर के गणमान्य लोग यहां दर्शन के लिए सालभर आते रहते हैं।
उनाव बालाजी स्थित सूर्य मंदिर की महिमा निराली
दतिया से लगभग 15 किलोमीटर दूर उनाव में स्थित सूर्य मंदिर है, जिसे उनाव बालाजी महाराज का मंदिर कहा जाता है, जो काफी प्रसिद्घ है। यहां मंदिर के द्वार पर बह रही पहुंज नदी में स्नान कर सूर्य भगवान के दर्शन करने पर जहां आंखों की रोशनी और चर्म रोग ठीक होते हैं। आंखों के रोग और चर्मरोग से छुटकारा मिलने के लिए लोग यहां पर तरह-तरह की मन्नतें मांगते हैं। यहां पर एक अनोखी परंपरा यह भी है कि यहां पर आने वाले भक्त अपनी मनोकामना के पूर्ण होने या रोगों से मुक्ति मिलने पर मंदिर में शुद्घ देसी घी भगवान सूर्य को समर्पित करते हैं। इसके चलते यहां पर हजारों क्विंटल शुद्घ देसी घी जमा हो जाता है, जो यहां बने अलग-अलग कुअों में रखा जाता है। इस देसी घी का उपयोग कोई भी पंडित या पुरोहित या अन्य लोग नहीं कर सकते हैं। यह घी यहां पर लगातार जमा होता रहता है। घी का कुआं भरने पर यहां नया कुआं खोदकर उसमें घी डाला जाता है।
प्रतिवर्ष होता है राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान
पूर्व डिप्टी कलेक्टर और पीतांबरा मंदिर पीठ के प्रशासक डीपी पाराशर बताते हैं कि वर्षभर पीतांबरा शक्ति पीठ पर आयोजन किए जाते हैं। इनमें वर्ष में आने वाली चारों नवरात्रि के दौरान दुर्गा शत चंडी जाप के माध्यम से राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान किया जाता है। इसके अलावा समय-समय पर शतचंडी व दुर्गा सप्तसती पाठ के अनुष्ठान भी किए जाते हैं। इसके अलावा पीतांबरा पीठ मंदिर ट्रस्ट द्वारा परशुराम जयंती, भैरव जयंती, गीता जयंती, स्वामी महाराज का आगम और निर्वाण पर्व भी यहां मनाया जाता है, इसमें धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। इसके अलावा गुरु पूर्णिमा पर अनेक कार्यक्रम होते हैं और इसमें भाग लेने वाले देश विदेश से यहां पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। पीतांबरा पीठ पर बसंत पंचमी के अवसर पर संगीत समारोह का आयोजन होता है जिसमें देश के ख्यातनाम शास्त्रीय संगीतकार व गायक अपनी प्रस्तुतियां मां पीतांबरा और स्वामी महाराज को समर्पित करते हैं।
महाभारत कालीन वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग
पीतांबरा शक्ति पीठ मंदिर परिसर में महाभारत कालीन वनखंडेश्वर महादेव का शिवलिंग भी स्थापित है। बताया जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान की थी। पीतांबरा शक्ति पीठ श्मशान भूमि पर निर्मित शिवलिंग के बारे में किवदंती है कि पांडवों के वनवास के दौरान यहां पर बियाबान जंगल हुआ करता था, इसके बाद इस जंगल को काटकर उन्होंने अपनी तपोभूमि बनाया और यहां पर शिवलिंग स्थापित कर पांचों पांडव और द्रोपदी ने यहां तपस्या की। वनों को खंडित कर बनाए गए इस शिव मंदिर के कारण इसका नाम वनखंडेश्वर महादेव पड़ गया है। एक मान्यता यह भी है कि महाभारत कालीन योद्धा और कौरव व पांडवों के गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने भी यही पर शिव की आराधना इसी शिवलिंग के सम्मुख बैठकर की थी, इसी तपस्या के बाद अश्वत्थामा को भगवान शिव से अमृतत्व के वरदान की प्राप्ति हुई थी।
भारत-चीन युद्ध के दौरान किया गया था राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान
पीतांबरा मंदिर पीठ की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यहां पर दर्शन करने और शतचंडी अनुष्ठान करने से शत्रु का नाश होता है। इसी के निमित्त 1962 में बैद्यनाथ कंपनी के चेयरमैन पंडित रामनारायण शर्मा ने भारत-चीन युद्ध के दौरान 1962 में यहां पर सर्वप्रथम राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान के साथ शत्रु विनाशक हवन किया था। बताया जाता है कि जैसे ही पीतांबरा पीठ मंदिर में यज्ञ प्रारंभ हुआ वैसे ही चीन की सेना ने पीछे हटना शुरू कर दिया था। वर्तमान में इस शक्ति पीठ पर कई राजनेता और फिल्म अभिनेता सहित उद्योगपति व न्यायपालिका के बड़े पदों पर आसीन अधिकारी यहां पहुंचते हैं और शतचंडी अनुष्ठान का आयोजन कराते हैं। बता दें कि कुछ माह पूर्व भारतीय सेना प्रमुख बिपिन रावत ने भी पीतांबरा शक्ति पीठ पर आकर देशहित के लिए राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान किया था। इसके अलावा यहां आने वाले लोगों में कई बड़े फिल्मकार और सेना प्रमुख और केंद्रीय मंत्री भी शामिल रहे हैं।
कछुए की पीठ पर बना श्रीयंत्र और तालाब
पीतांबरा शक्ति पीठ परिसर लगभग सात एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां पर संस्कृत महाविद्यालय, संगीत महाविद्यालय तथा आयुर्वेदिक औषधालय का संचालन भी किया जाता है। इसके साथ ही पीतांबरा देवी मंदिर के ठीक सामने कछुए की पीठ पर बना एक बृहद तालाब श्रीयंत्र पर आधारित बनाया गया है। कछुए को समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकलने की लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। इस तालाब का वैदिक महत्व बताया जाता है। हालांकि यह आम श्रद्धालुओं के लिए कम ही खोला जाता है।
इस तरह से पहुंचा जा सकता है
पीतांबरा शक्ति पीठ पर दतिया पहुंचने के लिए कई तरह के साधन उपलब्ध हैं। यह ग्वालियर से 75 किलोमीटर दूर और झांसी से 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहां रेल मार्ग और सड़क मार्ग का रास्ता सुलभ है। इसके अलावा यहां पर एक हवाई पट्टी (एयर स्ट्रीप) है जहां पर निजी व सरकारी छोटे विमान की आवाजाही होती रहती है। अनेक वीआइपी दर्शन करने के लिए निजी विमान का भी उपयोग करते हैं। ग्वालियर एयरपोर्ट पर आने के बाद सड़क मार्ग से दतिया पीतांबरा शक्ति पीठ पहुंचा जा सकता है। दतिया नेशनल हाई-वे 75 पर स्थित है। इसलिए सड़क मार्ग से पहुंचना भी काफी आसान है।
दतिया में रुकने और ठहरने की व्यवस्था
पीतांबरा मंदिर में दर्शन के लिए दतिया पहुंचने वाले श्रद्घालुओं के रहने, ठहरने व खाने-पीने की व्यवस्था भी काफी बेहतर है। पीतांबरा शक्ति पीठ ट्रस्ट द्वारा स्थायी दीक्षार्थियों के लिए नि:शुल्क रहने तथा खाने पीने की व्यवस्था नि:शुल्क की जाती है, जबकि अन्य श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए यहां पर धर्मशालाएं, होटल और सर्किट हाउस व डाक बंगले भी हैं, जो किफायती किराये पर उपलब्ध हैं। इसके अलावा खाने पीने के लिए कई होटल और रेस्टोरेंट भी हैं। हालांकि मंदिर सुबह पांच बजे खुल जाता है और रात्रि नौ बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। ऐसे मेंें श्रद्धालुअों को ठहरने की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है। शनिवार के दिन यहां भक्तों की सर्वाधिक भीड़ रहती है, हालांकि शनिवार के दिन का शास्त्रों व साहित्य में कहीं कोई विशेष दिन का उल्लेख नहीं मिलता है।