
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। प्रदेश में धान कटाई शुरू होने के साथ ही पराली जलाने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। शासन पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। पराली प्रबंधन की कोई नीति भी स्पष्ट नहीं है। सैटेलाइट से प्रदेश में पराली जलाने की 392 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें गुना एक नंबर पर है।
गुना जिले में सबसे अधिक 53 घटनाएं हुई हैं। इसके साथ ही सिंगरोली में 29, खरगोन में 20, शाजापुर में 18, धार में 18, अशोक नगर में 16 घटनाएं हुई हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल में 57 घटनाएं हो चुकी हैं। इसमें सबसे अधिक 16 घटनाएं मुरैना जिले में हुई हैं। ग्वालियर व शिवपुरी में 11-11 घटनाएं हो चुकी हैं।
जहां-जहां पर पराली जलाने की घटनाएं चिह्नित की गई हैं, वहां पर प्रशासन ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। ऐसे में जैसे-जैसे धान की कटाई में तेजी आएगी, वैसे-वैसे पराली जलाने की घटनाओं में भी बढ़ोतरी होगी। यहां बता दें कि 2024 में पराली जलाने में श्योपुर देश में पहले स्थान पर रहा था। इसके बाद दतिया व ग्वालियर का नंबर था।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) पराली जलाने की घटनाओं का पता अपनी संस्था सीआरएएमएस के माध्यम से सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके लगाती है, जिसे फिर राज्य सरकारों को कार्रवाई के लिए भेजा जाता है। इसके लिए इसरो और नासा के सैटेलाइट चित्रों का भी उपयोग किया जाता है। यह संस्था पराली जलाने का रोजाना बुलेटिन भी जारी करती है।
कृषि विभाग व प्रशासन ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए पंचायत स्तर पर समितियां गठित करने, स्थानीय अधिकारियों द्वारा निगरानी करने, संबंधित किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने के दावे किए थे। लेकिन वर्तमान में जिस तरह से पराली जलाने की प्रक्रिया शुरू हुई है, उससे दावों की हवा निकलती प्रतीत हो रही है। ग्वालियर जिले में तो अभी तक निगरानी करने के लिए समितियों के गठन का काम भी पूरा नहीं हो पाया है।
धान काटने के बाद पराली पर पूसा डीकंपोजर का छिड़काव करना होता है। इससे पराली मिट्टी में ही मिल जाती है और जैविक खाद का काम करती है। लेकिन इस प्रक्रिया को अपनाने में समय लगता है, जबकि किसानों को धान की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई करनी होती है। इसके बीच में समय कम मिलता है।
इसलिए किसान पराली को जलाने का आसान तरीका अपनाते है। साथ ही पूसा डीकंपोजर आसानी से किसानों को मिल भी नहीं पाता। हेपी सीडर व सुपर सीडर मशीन से पराली को नष्ट कर मिट्टी में मिला दिया जाता हैं, लेकिन ये मशीनें काफी महंगी होती हैं।
ऐसे में किसान इन्हें नहीं खरीदते। हालांकि कृषि विभाग इन मशीनों पर सब्सिडी भी देता है, लेकिन फिर भी हर किसान इसे नहीं लेता, क्योंकि इसके साथ ट्रैक्टर का होना भी जरूरी है।
पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए पंचायत स्तर पर समितियां गठित करने का काम चल रहा है। साथ ही विभाग के मैदानी कर्मचारियों को निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही उन किसानों पर कार्रवाई की जाएगी, जिन्होंने पराली जलाई है। -आरबीएस जाटव, उप संचालक, कृषि विकास व किसान कल्याण विभाग ग्वालियर।