Narendra Sing Tomar: जोगेंद्र सेन, ग्वालियर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में टाप फाइव में स्थान रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर की अप्रत्याशित रूप से दिल्ली से प्रदेश के लिए विदाई दे दी गई। माना जा रहा था कि नरेंद्र सिंह तोमर को दिल्ली से भोपाल मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार के तौर पर भेजा गया है। विधानसभा चुनाव के बीच तोमर राजनीतिक झंझावत में फंस गये और उन्हें प्रदेश की सक्रिय राजनीति से दूर कर संवैधानिक पद पर बैठा दिया गया। उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने समझा कि नरेंद्र सिंह की राजनीति से लगभग विदाई हो गई, किंतु छह माह में ही नरेंद्र सिंह तोमर प्रतिद्वंदियों को जता दिया कि वे पर्दे के पीछे की राजनीति के भी महागुरू है, क्योंकि ग्वालियर-चंबल अंचल की चार लोकसभा सीटों में तीन सीटों पर उनके पसंद के लोगों की उम्मीदवारी घोषित है। इनमें से दो प्रत्याशियों की उम्मीदवारी तो अप्रत्याशित मानी जा रही है।
गैर राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर ने भाजपा में सामान्य कार्यकर्ता के रूप में राजनीति का सफर शुरु किया। चुनाव के पहले पायदान पार्षदी से शुरुआत की। पहला विधानसभा चुनाव हारने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। भोपाल से दिल्ली पहुंचकर विशेष मुकाम हासिल किया। नरेंद्र सिंह तोमर को संगठन कुशल रणनीतिकार और मोदी सरकार में उनकी टाप फाइव में होती थी। हर चुनौती का सामना धैर्य के साथ करने वाले नरेंद्र सिंह के लिए 2023 का विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक करियर के लिए सांप सीढ़ी का खेल साबित हुआ। संगठन ने एक रणनीति से दिल्ली से विदा कर उनके गृह जिले मुरैना की दिमनी विधानसभा क्षेत्र से चुनावी समर में उतार दिया और लोगों के आकलन के विपरीत उन्हें विधानसभाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया गया।
भाजपा की लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारी की पहली सूची में ग्वालियर-अंचल की लोकसभा की चार सीटों पर घोषित प्रत्याशियों में तीन उनके नजदीक हैं। उनकी परंपरागत लोकसभा सीट मुरैना-श्योपुर से उनके मित्र शिवमंगल सिंह तोमर, ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से उनके सबसे नजदीकी भारत सिंह कुशवाह को उम्मीदवार बनाया गया है। भिंड-दतिया लोकसभा सीट से संध्या राय भी नरेंद्र सिंह तोमर के नजदीकी मानी जाती है। नरेंद्र सिहं के साथ शुरुआत से राजनीति कर रहे लोगों का कहना है कि नरेंद्र सिंह की राजनीति को समझना हर किसी की बस की बात नहीं है, क्योंकि जो भी करते हैं, वो हल्ला मचाकर व प्रदर्शित कर नहीं खामोशी के साथ करते हैं। उनकी विशेषता है कि नाम किसी का आगे बढ़ाते हैं, और मन में कोई दूसरे व्यक्ति का नाम होता है।
भाजपा से जुड़े राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जो लोग यह सोचते हैं कि किसी व्यक्ति को उसकी नेता की पसंद के कारण टिकिट मिला है, तो उन्हें भाजपा की रीति-नीति का कोई ज्ञान नहीं हैं। भाजपा में नेता की पसंद से नहीं संगठन की रणनीति के तहत उम्मीदवारी घोषित की जाती है। दोनों अंचलों की चारों लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारी संगठन की चुनावी रणनीति है। भाजपा में उम्मीदवारी के लिए राय सबकी ली जाती है। किसी व्यक्ति को टिकिट जीत का रोड मैप तैयार कर दिया जाता है।