नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता लागू हुए एक साल पूरा हो गया है। फिर भी अब तक डिजिटलाइजेशन से पुलिस कोसों दूर है। नए कानून में डिजिटल साक्ष्यों पर जोर दिया गया, क्योंकि अब अधिकांश अपराध में सीसीटीवी कैमरों के फुटेज, कॉल रिकॉर्डिंग, मैसेंजर के चैट रिकॉर्ड, कॉल डिटेल रिपोर्ट, लोकेशन ही ऐसे साक्ष्य हैं, जिनसे दोष सिद्धि आसानी से हो सकती है।
इसके लिए ई-साक्ष्य और ई-विवेचना ऐप भी शुरू हुए, लेकिन सबसे बड़ी मुसीबत इंटरनेट कनेक्टिविटी की है। बड़ी-बड़ी फाइल आसानी से डाउनलोड नहीं होतीं।
दूसरी परेशानी हैं, उम्रदराज विवेचक-जो तकनीकी रूप से इतने दक्ष ही नहीं हैं जो इस पर अमल कर सकें। डिजिटलाइजेशन में बड़ी चुनौतियां हैं।
1. कई इलाके ऐसे हैं, जहां सामान्य नेटवर्क ही आसानी से नहीं मिलता। यहां इंटरनेट न होने से आडियो, वीडियो, डाक्यूमेंट फाइल आसानी से अपलोड नहीं होती। इसमें एरर आता है।
2. अब तक करीब 39 टेबलेट ही ग्वालियर में उपलब्ध हैं। विवेचकों की संख्या में यह बहुत कम है। निजी मोबाइल का उपयोग ई-विवेचना में अभी बहुत कम विवेचक करते हैं।
3. अभी विवेचकों को इसके लिए और अधिक प्रशिक्षित करने की जरूरत है। लगातार इसके लिए कार्यशाला होनी चाहिए।
जब नए कानून लागू हुए तो ई-साक्ष्य ऐप और ई-विवेचना ऐप भी लॉन्च हुए। ई-साक्ष्य ऐप के जरिए सारे साक्ष्यों को ऑनलाइन किया जाना था। इसमें सुविधा थी कि सभी विवेचक उन्हें दिए गए टेबलेट या निजी मोबाइल में अपने लॉग इन आईडी के जरिए इस ऐप में प्रवेश कर सकेंगे। इसके बाद सभी साक्ष्यों को इस ऐप के माध्यम से ही अपराध क्रमांक डालने के बाद अपलोड किया जा सकेगा।
इसे सीसीटीएनएस (क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम) से जोड़ा गया। इसमें अपराध के बाद का मौका-नक्शा, साक्ष्य, फोरेंसिक रिपोर्ट, एमएलसी, पर्चे काटे जा सकते थे।
इंटर आपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम, एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां अपराध और अपराधियों का सारा डाटा साझा हो सकेगा। इसमें पुलिस, अभियोजन, एमएलसी, कोर्ट के सॉफ्टवेयर आपस में जुड जाएंगे। सबकुछ ऑनलाइन होगा। अभी यह आपस में कनेक्ट नहीं हुआ है।