नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। क्या आपने हाल ही में ड्राइविंग लाइसेंस या वाहन पंजीकरण (Vehicle Registration) के लिए आवेदन किया है और अब तक प्लास्टिक कार्ड नहीं मिला, तो आप अकेले नहीं हैं। मध्य प्रदेश के लाखों लोग इस समय इसी असुविधा से गुजर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 10 महीनों से न तो कार्ड जारी किए जा रहे हैं और न ही कोई स्थायी समाधान सामने आया है, फिर भी आवेदकों से 200 रुपये प्रति कार्ड के हिसाब से शुल्क लगातार वसूला जा रहा है।
मध्य प्रदेश में परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली इन दिनों सवालों के घेरे में है। बीते 10 महीनों से विभाग ने ड्राइविंग लाइसेंस और वाहनों के रजिस्ट्रेशन के लिए प्लास्टिक कार्ड देना बंद कर दिया है, बावजूद इसके हर आवेदक से 200 रुपये का शुल्क वसूला जा रहा है। पूरे प्रदेश में इस साल अब तक लगभग 33.94 करोड़ रुपये इसी मद में लिए जा चुके हैं, जिनमें से 24.96 करोड़ रुपये की राशि केवल इस साल की है।
इंदौर की बात करें तो यहां भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। अक्टूबर 2023 से अब तक इंदौर में 3.12 करोड़ रुपये कार्ड शुल्क के तौर पर वसूले जा चुके हैं, जबकि 4.98 करोड़ रुपये की कुल राशि पिछले 10 महीनों में ली गई है। आवेदकों को प्लास्टिक कार्ड की जगह केवल डिजिटल सर्टिफिकेट मोबाइल पर भेजे जा रहे हैं, जिसे प्रिंट कराने के लिए अलग से खर्च करना पड़ता है।
इस असुविधा की जड़ है स्मार्ट चिप कंपनी का टेंडर, जो सितंबर 2023 में समाप्त हो गया था। इसके बाद से अब तक नई एजेंसी नियुक्त नहीं की गई है, न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। आरटीओ इंदौर के प्रभारी प्रदीप शर्मा ने बताया कि उन्होंने इस विषय में विभागीय मुख्यालय को पत्र भेजा है, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं आया है।
स्थानीय लोगों और आवेदकों का कहना है कि यह खुला भ्रष्टाचार है। जब सेवा ही नहीं दी जा रही, तो शुल्क क्यों लिया जा रहा है। न विभाग स्पष्टीकरण दे रहा है और न ही रिफंड या समायोजन की कोई बात सामने आई है। इससे न केवल लोगों में नाराजगी है, बल्कि शासन की छवि भी प्रभावित हो रही है।