
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। फालका बाजार स्थित रामजानकी मंदिर जरी पटका को कोर्ट ने माफी औकाफ का मंदिर माना है। इस मामले में पंचम जिला न्यायाधीश अशोक कुमार त्रिपाठी ने दो रजिस्ट्रियों को भी शून्य घोषित कर दिया है। इस मामले में पूर्व पुजारी की ओर से वसीयत कर दी गई और वसीयत के आधार पर रजिस्ट्री हो गईं।
इसके बाद शासन की ओर से कोर्ट में दावा लगाया गया जिसमें प्रतिवादी कार्तिक कालोनाइजर प्राइवेट लिमिटेड डायरेक्टर संजीव गुप्ता, सीतादेवी, प्रदीप शर्मा व प्रीति शर्मा थे। इस मामले में मंदिर की भूमि को षड्यंत्रपूर्वक खुदबुर्द करने का प्रयास किया गया। यह अरबों की बेशकीमती भूमि है, जहां रामजानकी मंदिर और परिसर है।
बता दें कि फालका बाजार में श्रीरामजानकी मंदिर जरी पटका है जो 1916 के मंदिर रजिस्टर में दर्ज है। इस मामले में पूर्व में पुजारी की ओर से वसीयत कर जमीन का विक्रय कर दिया गया था, जो कि नहीं किया जा सकता। इस मामले में समीर सिंह की ओर से हाई कोर्ट में रिट पिटीशन लगाई गई कि माफी के मंदिर की जमीन को बचाया जाए। 2018 में इस मामले में तहसील स्तर से शासन की ओर से दावा लगाया गया।
पहले शासकीय अधिवक्ता विजय शर्मा के पास यह मामला था लेकिन शासन की ओर से जवाब नहीं पेश हुए। इसके बाद विजय शर्मा को यहां से बदल दिया गया। इस मामले में शासन की ओर से जो दावा लगाया उसमें प्रतिवादी कार्तिक कालोनाइजर प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर संजीव गुप्ता, सीतादेवी, प्रदीप शर्मा व प्रीति शर्मा हैं।
तहसीलदार ने कोर्ट में बयान दिए कि पुजारी रामचरणदास से फर्जी वसीयतनामा के आधार पर नामांतरण कराकर मदनलाल शर्मा ने अपने नाम नामांतरण कराया और उनकी मृत्यु के बाद उक्त भूमि का पत्नी सीतादेवी ने नामांतरण कराया। वर्तमान में सीतादेवी से कार्तिक कालोनाइजर के डायरेक्टर द्वारा शासकीय मंदिर की भूमि को अपने पक्ष में क्रय पत्र कराया जो कि खुदबुर्द करने का षड्यंत्र है। मंदिर के रामचरण दास महंत नियुक्त थे न कि भूमि स्वामी।
उन्हें केवल मंदिर के संरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें वसीयत कराने का अधिकार नहीं था। इस मामले में शासन की ओर से पैरवी शासकीय अधिवक्ता मिनी शर्मा ने की। उक्त भूमि का अनुमानित मूल्य करीब 250 से 300 रुपये बताया गया है।
तहसीलदार ने लिखा था पत्र-शासन की छवि खराब कर रहे शासकीय अधिवक्ता तत्कालीन तहसीलदार श्यामू श्रीवास्तव की ओर से कलेक्टर ग्वालियर को पत्र लिखा गया था जिसमें उल्लेख किया गया कि सालों से मंदिर की जमीन के मामले में शासन की ओर से पक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया और शासकीय अधिवक्ता विजय शर्मा द्वारा बिना समक्ष प्राधिकारी की अनुमति के प्रतिवादी पक्ष से राजीनामा करने की सहमति दे दी गई।
इससे निश्चित रूप से शासन को आर्थिक क्षति, शासन की गरिमा और शासन की छवि तीनों को ही प्रतिकूल रूप से दुष्प्रभावित करती है। यह पूरी कवायद माफी के मंदिर की जमीन को खुर्दबुर्द करने के मकसद से की गई है।
शासकीय अधिवक्ता विजय शर्मा द्वारा 14 जून 2022 को कोर्ट के समक्ष सुलह की संभावनाएं तलाशी गईं और मध्यस्थता के माध्यम से प्रकरण में राजीनामा करने के लिए शासन की बेशकीमती भूमि के लिए शासकीय अधिवक्ता ने अपनी स्वीकृति बिना किसी वरिष्ठ अधिकारी व प्रकरण के प्रभारी अधिकारी की अनुमति के दी गई।