ग्वालियर। शहर के 190 वर्ष पुराने श्री सद्गुरु महिपति नाथ ढोलीबुआ मठ के नये मठाधीश की घोषणा हो गई। नाथ सम्प्रदाय के इस मठ के नये मठाधीश होंगे 51 वर्षीय सच्चिदानंद नाथ गुरु श्रीकांत ढोलीबुआ महाराज। इनके पिता श्रीकांत ढोलीबुआ महाराज दो दिन पहले गुरुवार सुबह जीवन के चतुर्थ आम में प्रवेश किया। देह शुद्धि के लिए इस संस्कार के बाद वे अब न अन्न-जल ग्रहण करेंगे और न ही किसी परिवार से कोई रिश्ता-नाता रखेंगे।
प्रतिष्ठित तानसेन समारोह का आगाज हरिकथा से करने वाले श्रीकांत ढोलीबुआ महाराज 88 वर्ष के हो गए हैं। मठ की परम्परा के अनुसार मठाधीश अपने जीवन में ही मठ के नए मठाधीश को नियुक्त कर देता है। इसी परम्परा का पालन करते हुए ढोलीबुआ महाराज ने 19 जून को अपने छोटे बेटे और शिष्य संतोष पुरंदरे को वैदिक पूजा-पाठ के बाद मठ का नया मठाधीश बना दिया। इसके बाद शनिवार की शाम को नये मठाधीश ने मठ में भगवान शिव की पूजा अर्चना की। करीब 2 घंटे तक चली इस पूजा में पुण्य वाचन, नाथपीठ आह्वान, नवनाथ का पूजन, नाथपंथीबाण का पूजन आदि किया गया।
इस तरह हुई मठ की स्थापना
- संस्थान श्री 1008 राजयोगी श्री सद्गुरु महिपति नाथ ढोली बुआ महाराज मठ की स्थापना 190 वर्ष पूर्व हुई थी। तब तत्कालीन ग्वालियर रियासत के राजा दौलतराव सिंधिया थे। महिपति नाथ महाराज राजा के मोक्ष गुरु भी थे। उन्हीं के बुलावे पर वह उज्जैन से ग्वालियर आए थे।
- महिपति नाथ जी महाराज ने ही राजा दौलतराव सिंधिया को राजयोग की शिक्षा दी थी। वह 1745 शक (1822) के आसपास ईस्वी सन में मठ में ही महाराजा समाधिस्थ हो गए।
- वर्तमान में मठ के भीतर मुख्य समाधि श्री सद्गुरु महिपति नाथ की है। समाधि वाले स्थान पर ही एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग की पूजा अर्चना प्रतिदिन मठ में वैदिक मंत्रोचर के साथ नियमित की जाती है।
इस तरह सौंपी गद्दी
- गद्दी सौंपने से पहले पारंपरिक पद्घति से पूजा अर्चना की जाती है। उसके बाद मठ के महाराज द्वारा गद्दी दिए जाने वाले शिष्य को बाणा दिया जाता है। बाणा एक तरह का संकल्प होता है। इसमें कानों के कुंडल, टोपी, तोड़ा, कफनी, थैली, सिंगी, तम्बू, माला , नाद, पंजा, झोली आदि दी जाती है। गद्दीधारी बाणा वस्तुओं का धारण कर सदैव गुरु के बताए मार्ग पर चलता है।