ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। पौष मास की कृष्ण पक्ष की रुक्मणि अष्टमी तिथि 27 दिसंबर, सोमवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की अर्धांगिनी माता रुक्मिणी का जन्म हुआ था। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि अष्टमी तिथि का प्रारंभ 26 दिसंबर, रविवार को सुबह 9:35 पर पर होगा, और 27 दिसंबर सोमवार को सुबह 9:00 बजे अष्टमी तिथि समाप्त होगी।
देवी रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण की पहली पत्नी थी। भगवान श्री कृष्ण ने मंदिर से हरण कर देवी रुक्मणी से विवाह किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी रुक्मणी माता लक्ष्मी का ही अवतार थी। द्वापर युग में पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन इनका जन्म हुआ था। यह विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मणि देवी की पूजा करने से घर मे धन संपत्ति का आगमन होता है,दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है। माता लक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है।
रुक्मिणी अष्टमी पर पूजा विधि
रुकमणी अष्टमी वाले दिन सुबह उठ कर सभी कार्यो से निवर्त होकर अपने घर के मंदिर को गंगा जल से साफ करें। फिर अपने घर की पूर्व दिशा की तरफ एक चौकी रखें। चौकी इस तरह रखें की जब आप पूजा करने बैठें तो आपका मुंह पूर्व दिशा की तरफ हो। अब चौकी पर लाल वस्त्र बिछा ले। चौकी पर गणेश प्रतिमा की स्थापना करें। फिर चौकी के बीच में भगवान श्री कृष्ण व माता रुक्मणी के चित्र को रखें। अब कलश की स्थापना कर लें कलश में जल सुपारी, लॉन्ग, कुमकुम, हल्दी, द्रव्य, अक्षत डालें व कलश के ऊपर पान के पत्ते को रखकर उस पर एक दिया रखें। सर्व प्रथम प्रथम पूजनीय गणेश जी की विधि विधान से पूजा अर्चना कर ले। फिर भगवान श्री कृष्ण जी व माता रुक्मणी की पूजा अर्चना करें। स्नानादि कराने के बाद प्रतिमा को वस्त्र अर्पित करें भगवान श्री कृष्ण को पीले वस्त्र व माता रुक्मणी को लाल वस्त्र अर्पित करें। एक घी का दीपक जलाएं धूप बत्ती जलाएं व भगवान श्री कृष्ण को मोर पंख लगाएं मलयागिरि चंदन लगाएं । माता रुक्मणी को कुमकुम से तिलक करें ।अब प्रतिमा पर विभिन्न प्रकार के फल फूल माला को अर्पित करें। भगवान श्रीकृष्ण व माता लक्ष्मी के मंत्रों का विधिवत जाप करें। अब प्रतिमा के सामने खीर का भोग लगाएं उसमें तुलसीदल अवश्य डालें। खीर भगवान श्री कृष्ण और माता लक्ष्मी दोनों का अति प्रिय हैं। अतः इसे भोग के रूप में अवश्य चढ़ाना है।अब कपूर के ऊपर दो लॉन्ग रखें उसे पान के पत्ते पर रखकर भगवान श्री कृष्ण का माता लक्ष्मी की आरती उतारे। पूजा अर्चना करने के बाद नवमी तिथि को व्रत का पारण किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराकर या ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना बहुत शुभ होता है।