Navratra 2023: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। चार सौ साल पहले सातऊ में शीतला मां कन्या रूप में आई थी और यहीं पर पहाड़ पर आकर बस गईं। उनका भव्य मंदिर बना और श्रद्धालू वहां पर आराधना करने के लिए पहुंचते हैं। स्कंद पुराण में शीतला माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि शीतला देवी का जन्म ब्रह्माजी से हुआ था। शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं। लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया।राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई। शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए। लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ। तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला का रूप अनूठा है। देवी शीतला का वाहन गधा है। देवी शीतला अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगानुनाशक जल रखती हैं, तो दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं।चौसठ रोगों के देवता, घेंटूकर्ण त्वचा रोग के देवता, हैजे की देवी और ज्वारासुर ज्वर का दैत्य इनके साथी होते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार, देवी शीतला के पूजा स्तोत्र शीतलाष्टक की रचना स्वयं भगवान शिव ने की थी।