- कांग्रेस ने हर राउंड में भाजपा से एक हजार से अधिक मत हासिल कर बढ़त को निरंतर कायम रखा
- आप की रुचि गुप्ता ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेरा
- कांग्रेस उम्मीदवार का भी पार्टी में था काफी विरोध, पति विधायक सतीश सिकरवार अकेले लगे रहे
ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। ग्वालियर नगर निगम के 57 साल के इतिहास में पहली बार बदलाव की लहर चली है। भाजपा को अजेय महापौर सीट पर पराजय का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस के सिर पर महापौर का ताज सजता हुआ नजर आ रहा है। भाजपा को नगर के मतदाताओं पर इतना भरोसा था कि उन्हें केवल कमल चुनाव चिन्ह के अलावा कोई दूसरा चुनाव चिन्ह नजर नही आता है। उम्मीदवार का चेहरा उसका व्यक्तित्व कोई मायने नहीं रखता है। भाजपा का यही आत्मविश्वास उस पर भारी पड़ गया। भाजपा को मूल कांग्रेसी ने पराजित नहीं किया है। सबसे बड़ी बात है कि महापौर पद की विजयी प्रत्याशी शोभा सिकवार व उनके पति डा सतीश सिकरवार की राजनीति भाजपा की विचारधार के खाद-पानी से सिंचिंत है। भाजपा की हार के एक दो नहीं कई कारण हैं। पहला कारण भाजपा प्रत्याशी सुमन शर्मा का चेहरा संगठन के लिए जाना-पहचाना था, किंतु इनका मतदाताओं से इनका सीधा कोई जुड़ाव नहीं था। संगठन भी महापौर प्रत्याशी के चेहरे को मतदाता तक नहीं पहुंच पाए। जबकि सतीश सिकरवार की राजनीति जनसेवा पर आधारित है और एक जाना-पहचाना चेहरा था। मतदाताओं ने शोभा सिकरवार को नहीं, सतीश सिकरवार का चेहरा देखकर मतदान किया है। यह तय है कि भाजपा अपनी हार का ठीकरा जिला प्रशासन के सिर फोड़ेगी, क्योंकि मतदाता पर्चियों का वितरण नहीं होने के कारण मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में आठ प्रतिशत के लगभग कम रहा।
कांग्रेस का 57 साल का इंतजार
-1956 में ग्वालियर नगर निगम बना।
-1956 से 1973 तक पार्षद चुनते थे महापाैर, एक साल का हाेता था कार्यकाल।
-1973 से 1983 तक चुनाव नहीं हुए, प्रशासनिक व्यवस्था रही।
-1983 से 1987 तक चुनाव हुए, लेकिन पार्षदाें ने ही चुना महापाैर।
-1987-1994 तक चुनाव नहीं हुए, प्रशासनिक व्यवस्था रही।
-1995 से चुनाव शुरू हुए और जनमत से हुए चुनाव में बीजेपी की महापाैर अरूणा सैन्या बनी
-इसके बाद से नगर निगम महापाैर की कुर्सी पर भाजपा का कब्जा रहा।
हर राउंड में मिली भाजपा को पराजय
महापौर पद के लिए मतों की गिनती डाक पत्रों से शुरु हुई। भाजपा को डाक मत्र में पराजय मिली। उसके बाद पहले राउंड से ही कांग्रेस की उम्मीदवार डा शोभा सिकरवार ने अपनी प्रतिद्वंदी सुमन शर्मा से अंतिम राउंड तक बढ़त बनाकर रखी। भाजपा उम्मीदवार किसी भी राउंड में कांग्रेस से बढ़त नहीं ले सकी। इससे साफ है कि कांग्रेस को हर वर्ग का वोट मिला है।
शिवराज, सिंधिया व तोमर ने भी लगाई ताकत
नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा ने चुनाव प्रचार ने पूरी ताकत लगाई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन विधान सभाओं चुनावी सभा ली। ग्वालियर पूर्व व ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र में रोड शो किया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनाव प्रचार के अंतिम दो दिन भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। ग्वालियर पूर्व व दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में अंतिम समय केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ रोड शो किया। नरेंद्र सिंह तोमर ने चुनाव प्रचार के मध्य में कार्यकर्ताओं व समाजों की बैठक लीं। प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने व्यापारियों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके ठीक विपरीत कांग्रेस की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ एक बार चुनाव प्रचार के लिए आए। फूलबाग में एक चुनावी सभा ली और प्रबुद्धजन से संवाद किया। इसके अलावा अंतर कलह के बीच चुनाव प्रचार की कमान सतीश सिकरवार ने संभाल कर रखा और चुनाव प्रचार के अंतिम समय अस्पताल भर्ती होना पड़ा। स्टोन का आपरेशन कराकर फिर प्रचार की कमान संभाली।
दोनों दलों में था विवाद- कांग्रेस से शोभा सिकरवार का नाम महापौर प्रत्याशी के रूप में सामने आते ही शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष डा देवेंद्र शर्मा ने विरोध में सामने आ गये थे। देवेंद्र शर्मा पत्नी के लिए टिकट मांग रहे थे। नेता प्रतिपक्ष डा गोविंद सिह भी शोभा सिकरवार के टिकट के पक्ष में नहीं थे। खुलकर विरोध कर रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने अपनी सर्वे रिपोर्ट दिखाकर सभी को खमोश कर दिया। दूसरी तरफ भाजपा में महापौर उम्मीदवार के लिए सुमन शर्मा का टिकट फाइनल होने पर कार्यकर्ता खामोश हो गये। जबकि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सुमन शर्मा को महापौर का चुनाव लड़ाने के पक्ष में नहीं थे। चूंकि टिकट फाइनल होने के साथ प्रचारित किया गया है कि सुमन शर्मा संगठन की पसंद है। इसलिए सब चुप हो गये।
परिवर्तन की लहर के सामने रणनीति फेल हुई- जिले में नगरीय निकाय चुनाव के उम्मीदवारों की घोषणा के साथ परिवर्तन की लहर नजर आने लगी थी। आत्मविश्वास से लबरेज भाजपा के रणनीतिकार इस लहर को पहचानने में नाकाम रहे। यही कारण है कि भाजपा को पचास साल में पहली बार महापौर के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।