प्रियंक शर्मा, (ग्वालियर नईदुनिया)। ग्वालियर में युवाओं द्वारा छह साल पहले शुरू किया गया दिव्य दृष्टि फाउंडेशन दिव्यांग बच्चों की सहायता करने में अव्वल साबित हो रहा है। इस फाउंडेशन की विशेषता यह है कि यहां दिव्यांग बच्चों की देखभाल दिव्यांग शिक्षक और दिव्यांग अधीक्षक ही कर रहे हैं। बिना किसी सरकारी मदद के यह फाउंडेशन 35 बच्चों का बोर्डिंग स्कूल संचालित कर रहा है। पड़ाव पर फाउंडेशन का छात्रावास हैं, जबकि मोती महल में शिक्षा केंद्र। वर्तमान में यहां सभी बच्चे 10वीं कक्षा से नीचे की कक्षाओं में पढ़ रहे हैं, लेकिन यहां से पढ़कर निकले कई दिव्यांग युवा इस समय सरकारी नौकरी कर स्वावलंबी बन चुके हैं। अब वह अन्य बच्चों को स्वावलंबी बनाने के लिए अपने वेतन का कुछ हिस्सा फाउंडेशन को दे रहे हैं।
फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य जीतेंद्र परमार वर्तमान में ग्रामीण मध्यांचल बैंक में कार्यालय सहायक के रूप में पदस्थ हैं। वह मूलत: सीहोर जिले के रहने वाले हैं। इसी प्रकार गुना जिले के सुनील मंडलोई ने भी यहां पढ़ाई की और बाद में रेलवे की नौकरी हासिल कर ली। हाल ही में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा में इस फाउंडेशन के दो दृष्टि बाधित छात्र प्रमोद विश्वकर्मा और सोनू अहिरवार मुख्य परीक्षा के लिए चयनित हुए हैं। फाउंडेशन के अध्यक्ष अंकुश गुप्ता स्वयं साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वर्ष 2015 में अंकुश की मुलाकात एक दृष्टि बाधित साफ्टवेयर इंजीनियर से हुई। उससे बातचीत करने पर अंकुश को प्रेरणा मिली कि सही मार्गदर्शन और शिक्षा से दिव्यांग बच्चे भी अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। ऐसे में उन्होंने ग्वालियर में इस फाउंडेशन की शुरुआत की। पहले ही वर्ष प्रदेशभर के अलग-अलग जिलों से कई दिव्यांग बच्चे यहां पढ़ने के लिए पहुंचे। इन बच्चों की पढ़ाई से लेकर इनकी देखभाल के लिए फाउंडेशन में नौ लोग हैं। इनमें से रसोइया, चपरासी और वाहन चालक को छोड़कर बाकी छह लोग भी दिव्यांग ही हैं।
बच्चों को मिलती हैं यह सुविधाएंः दिव्य दृष्टि फाउंडेशन में बच्चों को मुफ्त शिक्षा, भोजन, छात्रावास के साथ ही आवश्यकता पढ़ने पर परिवहन, इलाज तक की सुविधा मुहैया कराई जाती है। कुछ ऐसे दिव्यांग जो इलाज के बाद ठीक हो सकते हैं, उनकी भी फाउंडेशन की ओर से सहायता की जाती है। फाउंडेशन के अध्यक्ष के अनुसार इन सभी कार्यो में प्रतिमाह 80 से एक लाख रुपये तक खर्च हो जाता है।
प्रबंधन नेशनल पैरा स्वीमर के हाथः फाउंडेशन के स्कूल व छात्रावास में प्रबंधन का जिम्मा पूजा कुशवाह के पास है। पूजा स्वयं दिव्यांग हैं और राष्ट्रीय स्तर की पैरा स्वीमर हैं। उनके पास प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर की तैराकी प्रतियोगिताओं में जीते गए मेडल तो हैं, लेकिन शिक्षित नहीं होने के कारण उनकी सरकारी नौकरी नहीं लग पा रही है। यही कारण है कि पूजा ने शिक्षा का महत्व समझा और अपने जैसे अन्य दिव्यांगों को शिक्षित करने के लिए अपने हिस्से का योगदान दे रही हैं।