Gwalior Navratri 2021: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि । शहर ग्वालियर से करीब 20 किलोमीटर दूर सांतऊ गांव में शीतला माता का मंदिर है, जो भक्तों की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में हर साल नवरात्र का मेला पर भव्य मेला आयोजित किया जाता है। मगर इस साल कोरोना के कारण मंदिर के पट आम जनता के लिए बंद कर दिए गए हैं।
मंदिर के महंत कमल सिंह भगत जी ने बताया कि कोरोना के चलते प्रशासनिक आदेशानुसार मंदिर पट बंद हैं। नवरात्र में भी मंदिर नहीं खुले हैं और न मेला आयोजित किया जा रहा है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि यह मंदिर लगभग 450 साल पुराना है। शीतला देवी का यह एक ऐसा मंदिर है, जहां देवी अपने भक्तों की पूजा से प्रसन्ना होकर यहां आकर विराजमान हो गई। मां शीतला की महिमा इतनी बढ़ गई है कि नवरात्र के दिनों में दूर-दूर से उनके भक्त नंगे पांव पैदल चलकर दर्शन करने पहुंचते हैं। मान्यता है कि मंदिर में प्रार्थना करने से निसंतान दंपति को संतान प्राप्त होती है। वहीं लोग मां के दरबार में सुखी जीवन के लिए अपने बच्चों को पालने में झूलाते हैं। बताया जाता है कि सैंकड़ों वर्ष पहले घने जंगल के कारण यहां बहुत शेर रहा करते थे। इसके बावजूद मां के भक्तगण रोज उनकी पूजा अर्चना करने आते रहे। एक समय में पूरे चंबल इलाके में डकैतों का बोलबाला था। लेकिन डकैतों ने इस इलाके में कभी लूटपाट नहीं की, न ही कभी श्रद्धालुओं की परेशान किया। लोगों का कहना है कि डकैत भी मां के दरबार में अपनी प्रार्थना लेकर आते थे। और शीतला मंदिर पर पीतल का बहुत बड़ा घंटा हर नवरात्रि पर चढ़ाते थे।
बताया जाता है कि भिंड जिले के गोहद के पास खरौआ गांव के नजदीक मां का छोटा सा मंदिर था। माता के पहले भक्त गजाधर वहां गाय चराने जाते थे। महंत गजाधर माता को रोजाना गाय का दूध चढ़ाते थे। भक्ति से प्रसन्ना होकर देवी मां कन्या रूप में प्रकट हुईं और महंत से अपने साथ ले चलने को कहा। गजाधर ने माता से कहा कि उनके पास कोई साधन नहीं है, वह उन्हें अपने साथ कैसे ले जाएं। तब माता ने कहा कि वह जब उनका ध्यान करेंगे वह प्रकट हो जाएंगी। गजाधर ने सांतऊ पहुंचकर माता का आव्हान किया तो देवी प्रकट हो गईं और गजाधर से मंदिर बनवाने के लिए कहा। गजाधर ने माता से कहा कि वह जहां विराज जाएंगी वहीं मंदिर बना दिया जाएगा। माता सांतऊ गांव से बाहर निकल कर जंगलों में पहाड़ी पर विराजमान हो गईं। तब से महंत गजाधर के वंशज इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। महंत कमल सिंह भगत जी मंदिर की सेवा करने वाली 6वीं पीढ़ी है।