ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। नगर में गणेशोत्सव की तैयारियां पूरे जोर-शोर व उत्साह के साथ शुरू हो गईं हैं। छोटे-बड़े आकार की मूर्तियों का स्वरूप बनकर तैयार हो गया है। मूर्तिकार अब इन श्रीजी की प्रतिमाओं का श्रृंगार करने में जुटे हैं। इसके साथ ही नगर के प्राचीन गणेश मंदिरों में भी गणेशोत्सव की तैयारियां शुरू हो गईं हैं। प्राचानी मोटे वाले गणेशजी. एमएलबी रोड पर कांग्रेस के कार्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित अर्जी वाले गणेशजी, कंपू पर स्थिति उसरेटे सेन समाज के गणेश व हरिशंकरपुरम में नागर शैली में प्राचीन गणेश मंदिर में साफ-सफाई के साथ श्रीगणेशजी की प्रतिमा को संजाने-संवारने व श्रृंगार करने का कार्य शुरू हो गया है। एक सितबंर से दस दिवसीय गणेशोत्सव शुरू होगा।
खासगी बाजार के मोटे गणेशजी
नगर में सबसे प्राचीन मोटे गणेशजी का मंदिर लोगों की आस्थाएं जोड़ी हैं। यह प्रति बुधवार को श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। श्रद्धालु दुर्वा के साथ मोटक का भोग लगाते हैं। मोटे गणेश जी की प्रतिमा पांच सौ वर्ष पूर्व की बताई जाती है। इस प्रतिमा को राजस्थान के मेबाड़ रियासत से स्थापित कराने के लिए लाया गया थी। इस मंदिर का जीणोद्धार तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने कराया था। चूकि इंदौर के बड़े गणेश की प्रतिमा के तरह इस प्राचीन प्रतिमा का आकार वृहद है। इसलिए गणेशभक्त इन्हें मोटे गणेशजी के नाम से पुकारते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि मोटे गणेशजी के दर्शन मात्र से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। मोटे वाले गणेशजी के संबंध में एक और किदवंती प्रचलित है कि मोटे गणेशजी की प्रतिमा धरती से प्रकट हुई थी।
डेढ़ सौ साल प्राचीन हैं अर्जी वाले गणेशजी, हर मनोकामना पूर्ण होत हैं
एमएलबी रोड पर कांग्रेस कार्यालय के सामने विराजित अर्जी वाले श्रीगणेशजी की अदभूत प्रतिमा डेढ़ सौ साल पूर्व की बताई गई है। अमूमन श्रीगणेशजी के हाथ में लड्डू होते हैं। यहां श्रीजी रिद्धी-सिद्धी के साथ विराजित है। रिद्धी-सिद्धी के साथ श्रीगणेशजी के दर्शन का विशेष महत्व है। एक हाथ में गणेश जी के हाथ में वेद, दूसरे हाथ में शस्त्र है। तीसरे हाथ में माला व चौथी भूजा में कमल का फूल लिये हुए हैं। बप्पा की सूड़ में तीन अंटे लगे हैं। इन्हें अ्रजी वाले गणेशजी कहते हैं। इस मंदिर के कर्ताधर्ता ललित खंडेलवाल ने बताया कि मंदिर मांगने के लिए आने वाले श्रद्धालु नारियल के साथ एक पर्ची पर अपनी मन्नत लिखकर गणेशजी के श्रीचरणों में अर्पित करते हैं। और मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु की हर मन्नत पूरी करे के साथ श्रीजी सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु छप्पन भोग के साथ भंडारा भी कराते हैं। प्रत्येक बुधवार को यहां दोपहर व रात को भंडारा होता है। श्रीजी यहां कांच के भव्य मंदिर में विराजमान हैं!
कंपू स्थित गणेशजी का मंदिर पौने दो सौ साल पुराना प्राचीन मंदिर है
कंपू पर नेहरू पार्क के पीछे स्थिति उसरेटे सेन गणेश मंदिर के संबंध में कई किदवंतियां प्रचालित हैं। इस मंदिर के ट्रस्ट के अध्यक्ष गेंदालाल सविता ने बताया कि यह मंदिर लगभग पौने दो साल पुराना हैं। यह विराजित श्रीजी पर सिंदुर का चोला भी चढ़ाया जाता है। किदंवति हैं कि गणेशजी की प्रतिमा खुदाई के समय स्वयं प्रकट हुई थी। और इस प्रतिमा को पेड़ के नीचे स्थापित कर दी थी। मंदिर का निर्माण स्टेट टाइम किया गया था। मान्यता है कि यहां आने वाले हरभक्त की मनोकामना पूर्ण होती है। श्रद्धालु प्रति बुधवार को दर्शन करने के लिए आते हैं। और भोग के रूप में पालक अर्पित करते हैं। मंदिर में ग्रामीण क्षेत्रों से दर्शन करने के लिए आते हैं। इसलिए मंदिर के कुछ कमरे धर्मशाला के रूप में उपयोग किये जाते हैं।
हरिशंकपुरम में गणेशजी का निर्माण नागर शैली में किया गया है
नगर के हरिशंकरपुरम में गणेशजी का प्राचीन गणेश मंदिर हैं। यह विराजित गणेश प्रतिमा ढाई सौ साल से तीन सौ साल प्राचीन बताई गई है। यहां गणेशजी की भव्य आकर्षक प्रतिमा है। गणेशजी अपने पिता शिवजी के साथ विराजमान हैं। उनके सामने पिंड़ी आकर में शिवजी विराजित है। और वह नंदी महाराज विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण पत्थर से किया गया है। साथ ही इन पत्थरों पर देवी देवताओं, नाग, गंधर्व, आदि की प्रतिमाओं का तराशा गया है। मंदिरि का निर्माण नागरशैली में किया गया है. नगरशैली उत्तर भारतीय हिंदू स्थापतत्य कला है। नागरशैली मंदिरों के आधार से लेकर सर्वोच्च तक इसका चतुष्कोण आकार होता है। नागरशैली के मंदिर में गर्भ गृह है, उसके समीप अंतरार मंडल तथा अर्द्ध मण्डप है। यहां आने वाले भक्त ही हर मनोकामना पूर्ण होती हैं।