Ganesh Mahotswa 2023: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। शहर में प्रथम पूज्य मंगलमूर्ति श्रीगणेश के 10 से अधिक प्राचीन मंदिर है। इन मंदिरों से कई किदवंतियां भी जुड़ी हुईं हैं। ग्वालियर लंबे समय तक मराठा स्टेट रही है। इसीलिए गणेश मंदिरों का यहां विशेष महत्व और आस्था व विश्वास का केंद्र हैं। खासगी बाजार में स्थित मोटे गणेशजी की प्रतिमा डेढ़ सदी से अधिक प्राचीन प्रतिमा है। इसी तरह एमएलबी रोड पर विराजित माता रिद्धि-सिद्धी के साथ विराजित अर्जी वाले श्रीगणेश की अद्भुत एवं अलौकिक प्रतिमा है। अमूमन गणेश जी के हाथों में लड्डू होते हैं, लेकिन अर्जी वाले श्रीगणेश के हाथों में लड्डू की बजाये एक हाथ में वेद, और दूसरे हाथ में शस्त्र है। गणेशोत्सव में नगर के प्रमुख गणेश मंदिरों पर काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिये पहुंचते हैं।
नगर के खासगी बाजार में सबसे प्राचीन मोटे गणेशजी के मंदिर से लोगों की आस्थाएं जुड़ी हैं। यहां श्रद्धालु दूर्वा के साथ-साथ मोदक का भोग लगाते हैं। मोटे गणेश जी की प्रतिमा पांच सौ वर्ष पूर्व की बताई जाती है। इस प्रतिमा को राजस्थान के मेवाड़ रियासत से स्थापित कराने के लिए लाया गया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने कराया था। वृहद आकार की प्रतिमा होने के कारण गणेशभक्त इन्हें मोटे गणेशजी के नाम से पुकारते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि मोटे गणेशजी के दर्शन मात्र से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। मोटे वाले गणेशजी के संबंध में एक और किदवंती प्रचलित है कि मोटे गणेशजी की प्रतिमा धरती से प्रकट हुई थी। प्रति बुधवार को यहां गणेशभक्त दर्शन करने के लिये आते हैं।
अर्जी वाले गणेशजी, एमएलबी रोड पर कांग्रेस कार्यालय के सामने विराजित अर्जी वाले श्रीगणेशजी की अद्भुत प्रतिमा डेढ़ सौ साल पूर्व की बताई गई है। अमूमन श्रीगणेशजी के हाथ में लड्डू होते हैं। यहां श्रीजी रिद्धी-सिद्धी के साथ विराजित हैं। रिद्धी-सिद्धी के साथ श्रीगणेशजी के दर्शन का विशेष महत्व है। गणेश जी के एक हाथ में वेद, दूसरे हाथ में शस्त्र है। तीसरे हाथ में माला व चौथी भुजा में कमल का फूल लिये हुए हैं। बप्पा की सूंड तीन बार मुड़ी हुई है। इन्हें अर्जी वाले गणेशजी कहते हैं। इस मंदिर के कर्ताधर्ता ललित खंडेलवाल ने बताया कि श्रद्धालु नारियल के साथ एक पर्ची पर अपनी मन्नत लिखकर गणेशजी के श्रीचरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु की हर मन्नत पूरी करने के साथ श्रीजी सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु छप्पन भोग के साथ भंडारा भी कराते हैं। प्रत्येक बुधवार को यहां दोपहर व रात को भंडारा होता है। शीशमहल जैसे गर्भगृह में श्रीजी माता रिद्धि-सिद्धि के रूप में विराजमान हैं।
हरिशंकपुरम में गणेशजी के मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है। नगर के हरिशंकरपुरम में गणेशजी का प्राचीन गणेश मंदिर हैं। यहां विराजित गणेश प्रतिमा ढाई सौ से तीन सौ साल प्राचीन बताई गई है। यहां गणेशजी की भव्य आकर्षक प्रतिमा है। यहां गणेशजी अपने पिता शिवजी के साथ विराजमान हैं। उनके सामने पिंडी आकर में शिवजी विराजित हैं। मंदिर का निर्माण पत्थर से किया गया है। साथ ही इन पत्थरों पर देवी देवताओं, नाग, गंधर्व, आदि की प्रतिमाओं का तराशा गया है। मंदिर का निर्माण नागरशैली में किया गया है। नगरशैली उत्तर भारतीय हिंदू स्थापतत्य कला है। नागरशैली मंदिरों के आधार से लेकर सर्वोच्च तक इसका चतुष्कोण आकार होता है। नागरशैली के मंदिर में गर्भ गृह है, उसके समीप अंतरार मंडल व अर्द्ध मंडप है। यहां आने वाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं।
श्री गणेशः मंदिर कटीघाटी जीवाजीगंज लश्कर ग्वालियर पर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर है, जो सन 1958 में बाबा लखनदास ने अपने प्रिय श्रीवास-सेन समाज के शिष्यों को सन 1962 में दान पत्र पर लिखकर समाज को समर्पित किया था। मोटे गणेशजी के भांति यहां भी श्रीजी का वृहद आकार है। ऐसी मान्यता है कि अद्भुत व आलोकिक प्रतिमा के दर्शन मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। काफी संख्या में श्रद्धालु श्री गणेशोत्सव पर दर्शन करने के लिये यहां पहुंचते हैं। गणपति बप्पा यहां आने वाले हर भक्त के कष्टों का निवारण करते हैं।