Vijay Diwas 2022: अमित मिश्रा. ग्वालियर। 16 दिसंबर यानी विजय दिवस, जिसे वर्ष 1971 में पाकिस्तानी सेना पर भारत की विजय के रूप में हर साल मनाया जाता है। ग्वालियर-चंबल अंचल वीर सैनिकों की धरती है, जहां से सबसे ज्यादा सैनिक देश पर मर मिटने के लिए तैयार रहते हैं। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान जो वर्तमान में बांग्लादेश है, वहां पाकिस्तानी सेना को शिकस्त देने वालों में ग्वालियर-चंबल के भी वीर सैनिक शामिल थे। जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की आन-बान और शान के लिए तीन-तीन दिन तक कड़कड़ाती सर्दी में बिना खाना खाए जंग लड़ी, लेकिन पीछे नहीं हटे। आखिर पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। पढ़िए पूरी कहानी, वीर सैनिकों की जुबानी..
हमारे 62 सैनिक बलिदानी हुए, लेकिन जीत की हासिल
मैंने वर्ष 1969 में भारतीय सेना ज्वाइन की थी, जब मैं करीब 19 साल का था। मेरी एक साल की ट्रेनिंग हुई थी। नवंबर 1971 में मेरी तैनाती पूर्वी पाकिस्तान में हुई, उस समय मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह थे। 23 नवंबर को मोरापाड़ा पर अटैक की प्लानिंग थी। मोरापाड़ा पोस्ट पूर्वी पाकिस्तान में ही थी। यह पोस्ट पाकिस्तानी सेना की सबसे मजबूत पोस्ट थी, जहां फेंसिंग के साथ माइन भी थे। हमारा पहला अटैक विफल रहा, जिसमें हमारे 62 सैनिक बलिदानी हो गए। आंखों के सामने यह मंजर था, जब हमारे साथी हमेशा के लिए बिछड़ गए। तीन घंटे बाद ही हमने दूसरा अटैक किया, इस बार हम सफल हो गए। चार प्लाटून बाएं, छह प्लाटून दाएं से तैनात थीं। अल्फा, ब्राबो, डेल्टा और चार्ली ने अटैक किया, मैं अल्फा का हिस्सा था। फिर गंगापाड़ा और हाई स्कूल पर कब्जा किया। जब सुबह चार बजे पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर किया, तब हमने जीत का जश्न मनाया। देश पर कुर्बान हुए सभी भाइयों के शव हम लेकर आए थे। हमने एक पाकिस्तानी सेना के मेजर को भी पकड़ा था। वर्ष 1998 में मैं सेवानिवृत्त हुआ।
40 दुश्मनों को मैंने मारा, उनके शव भी दफनाए
मैंने वर्ष 1965 में सेना ज्वाइन की थी और 31 दिसंबर 1993 तक देश सेवा की। 1970 की बात है, जब भारत और पाकिस्तान में चुनाव हुए। पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर्रहमान जीते, इसके बाद उनकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री से हुई। उस समय मैं सियालकोट के फागुल्का सेक्टर में पदस्थ था। फिर भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान भेजा गया। मैं गार्ड ब्रिगेड की 8वीं बटालियन में था। यहां से भजनपुरी बार्डन लाइन से होते हुए हम आगे बढ़े और तिरमोहनी, हिल्ली पहुंच गए। 22 नवंबर शाम को नवापारा गांव में चार्ली ने अटैक किया, यहां कब्जे के बाद मोरापारा पहुंचे, जो पाकिस्तानी सेना की सबसे मजबूत पोस्ट थी। उनकी बलोच रेजीमेंट यहां थी, इससे हमारा आमना-सामना हुआ। हमारे कई सैनिक शहीद हुए। 10 दिसंबर की रात चांदीपुर गांव फिर हाकिमपुर, हाई स्कूल और पाकिस्तानी आर्मी के हेड क्वार्टर पर कब्जा करते ही पाकिस्तानी सेना ने सुबह चार बजे सरेंडर कर दिया। तीन दिन तक बिना खाना खाए लड़े, हमारे साथी शहीद हुए थे, इसलिए किसी भी सूरत में विजय पानी थी। उनके करीब 40 दुश्मन सैनिक मैंने ही मारे। जीत के बाद उनके शवों को वहीं दफनाया भी।