योगेन्द्र शर्मा। अपने अटल इरादे से देश और दुनिया में हिंदुस्तान की नई पहचान बनाने वाले अटलजी के लिए सबसे मुश्किल दौर कंधार हाईजैक और करगिल का युद्ध था। कंधार प्रकरण में अपनों की चिंता ने उनको परेशान कर दिया था, तो करगिल के वक्त पड़ोसी ने उनकी पीठ में छुरा भोंका था, लेकिन उनके विराट व्यक्तित्व और प्रभावशाली जवाब देने की कला के आगे दुनिया के अगुआ अमेरिका को भी मुंह की खाना पड़ी थी।
करगिल के वक्त दुनियाभर की निगाहें हिंदुस्तान पर लगी हुईं थी। दोनों मुल्क जो दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान पर एक-दूसरे को चुनौती दे रहे थे। आज की तरह उस वक्त भी पाकिस्तान आतंक की अगुआई कर रहा था। करगिल में आतंकियों के साथ पाक सेना के जवान हिंदुस्तान से जंग लड़ रहे थे।
पाक ने किया था अटलजी के साथ विश्वासघात -
उस वक्त भारत की कोशिश यही थी की करगिल तक सीमित जंग दूसरे इलाकों तक न फैले, लेकिन लाहौर बस के बाद जिस तरह से पाकिस्तान ने अपना असली चेहरा दिखाया था, उससे अटलजी बेहद स्तब्ध और खफा थे। उस वक्त पहली बार देश में किसी गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने दिल्ली दरबार की सत्ता संभाली थी। उधर, हमेशा की तरह पाक में सत्ता सूत्र सेना के हाथ में थे। करगिल में जंग छिड़ गई, पाकिस्तान के पीएम को इस बात की भनक नहीं थी और सारे सूत्र सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्ऱफ ने संभाल रखे थे। लेकिन जंग का जबाव दुनिया को शरीफ को देना था।
पाक के आका अमेरिका तक जब यह बात गई तो उन्होंने सीधे तौर पर इस गैरजरूरी जंग के लिए पाक को जिम्मेदार माना और पाक के वजीरे आजम नवाज शरीफ को वाशिंगटन तलब किया। अपने आका का आदेश मिलते ही शरीफ तुरंत अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने वाशिंगटन पहुंच गए और इस बात की सफाई दी कि करगिल युद्ध उनको विश्वास में लेकर नहीं छेड़ा गया है और यह सब मुशर्ऱफ का किया धरा है, लेकिन उस वक्त पाकिस्तान की बागडोर नवाज शरीफ के हाथ में थी, इसलिए अमेरिका सहित वैश्विक आलोचना का शिकार भी उनको होना पड़ा।
बिल क्लिंटन को दिया था सख्त जवाब -
अब बारी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के अगुआ अटलजी की थी। अमेरिका ने अटलजी से भी इस संबंध में बात की, लेकिन अटलजी ने इस बात को कोई तवज्जो नहीं दी और गेंद अमेरिका और पाकिस्तान के पाले में डाल दी कि हमलावार से इस संबंध में बात की जाए। अटलजी के जवाब से अमेरिका सहित दुनिया में भारत की साख में काफी इजाफा हुआ। दुनिया को यह सख्त संदेश गया की हिंदुस्तान अपने मसले हल करने में खुद सक्षम है। उस वक्त पाक के विश्वासघात से आहत अटलजी ने किसी अन्य तरीके् से विवाद सुलझाने की बजाय अपनी सेना पर विश्वास जताया और दुनिया को यह संदेश दिया कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी समस्या खुद सुलझाने में सक्षम है। आखिर अमेरिकी डॉलर पर पल रहे पाकिस्तान को मुंह की खाना पड़ी और अटलजी की सख्ती, सेना के अदम्य साहस और अमेरिकी आदेश और बेरुखी से पाकिस्तान को अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ा।
पाक को दी थी दुनिया से मिटाने की धमकी -
क्लिंटन और शरीफ की मुलाकात के दौरान शरीफ ने क्लिंटन से यह कहा था कि," मुझे डर है कि पाक सेना कहीं भारत पर परमाणु हमला न कर दे।" शरीफ की बातों से सकते में आए क्लिंटन ने तुरंत इस संबंध में अटलजी से बात की और शरीफ की बातों और पाक सेना के मंसूबों के बारे में बताया, लेकिन अटलजी का बयान बेहद चौंकाने वाला था। अटलजी ने कहा था कि, "पाक सेना के परमाणु हमले से भारत का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन पाकिस्तान दूसरे दिन का सूरज नहीं देख पाएगा।"