खिरकिया (नवदुनिया न्यूज)। तहसील क्षेत्र के गांव नीमसराय में चल रही नौ दिवसीय रामकथा का श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ ही रविवार को समापन हुआ। इस अवसर पर श्रीराम कथा की सरस कथा वाचक व्यास नारायण शास्त्री (कांटाफोड़) ने अपने मुखारबिंदु से कथा अमृत का वर्णन करते हुए श्रीराम राज्याभिषेक का वर्णन कर रामराज्य की व्याख्या की। श्रीराम कथा के समापन दिवस पर कथा व्यास ने कहा कि रामायण के सभी पात्र आदर्श प्रस्तुत करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार वास्तव में श्रेष्ठ भी वही है। जो पूरे समाज को समेटकर चलता है। श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ। श्रीराम कथा में राज्याभिषेक के समय राजा रामचंद्र जी के जयकारों से पूरा पंडाल गुंजायमान हो गया। कार्यक्रम आयोजकों द्वारा आरती उतार कर एवं फूल वर्षा कर श्रीराम का राज्याभिषेक करने के बाद कथा का समापन हुआ। बाद में जन कल्याण यज्ञ के बाद आयोजित भंडारे में सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया। रामकथा का उपसंहार करते हुए शास्त्रीजी ने कहा कि श्रेष्ठ वही है, जो पूरे समाज को समेटकर चलता है। हमने ये किया-हमने वो किया ऐसा न कहें।
श्रीराम कथा मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है
कथा को विराम देते हुए रामकथा के मर्मज्ञ पं. नारायण शास्त्री ने कहा कि रामकथा मानव कल्याण का जहां मार्ग प्रशस्त करती है, वहीं यह मुक्ति का रास्ता भी बताती है। इसके रसपान ने बुद्धि व विचार बदलते है जिससे आपसी कटुता समाप्त हो समरसता फैलती है। मानव का कल्याण उसकी उसकी मानवता पर ही निर्भर होता है। पर मानवता क्या है,समाज आज इससे भटक रहा है। उसे याद कराने का सफल माध्यम राम कथा ही है। इसके श्रवण मात्र से लोगों को मानवता का भान हो जाता है। सत्संग के प्रभाव को बतलाते हुए उन्होंने कहा कि जब भी मानव ने सत्संग का सहारा लिया, उसमें अच्छे विचार, अच्छी सोच का समावेश होने लगा।
मनुष्य के गुणों का बखान करते हुए उन्होंने कहा कि गुणवान व्यक्ति को देवता भी नमन करते हैं। संतों की व्याख्या करते हुए पं. शास्त्री ने कहा कि संत का वेशभूषा या पोशाक से कोई संबंध नहीं होता। सच्चा संत वही होता है, जो जीवन में भगवान का भजन करते हुए लोक कल्याण की और जगत के कल्याण की कामना करें। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार कपास का पुष्प कपड़ा बनकर मनुष्य के तन को ढकता है, उसी प्रकार सच्चे संत भी समाज और मनुष्य के दोष रूपी अब गुणों को ढकता है। उन्होंने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान युग और समय में साधु और संत व के नाम पर केवल दिखावा आडंबर और छलावा बहुत हो रहा है।
महाकवि तुलसीदास के जीवन के बारे में बताया
महाकवि तुलसीदास के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ था, उस नक्षत्र में जन्मे बच्चे के माता-पिता का तुरंत देहावसान हो जाता है। ऐसा शास्त्र कहते हैं। इसलिए तुलसीदास जी ने जन्म के साथ ही अपने माता पिता को खो दिया और अनाथ हो गए। संसार की ठोकरें खाते हुए विवाह के पश्चात पत्नी की प्रेरणा से हरि की शरण में चले गए। एक साधारण तुलसी से तुलसीदास हो गए। संसार के लोगों को राम चरित्र मानस रूपी वह रत्न दे गए। जिसे अपने जीवन में अगर मनुष्य उतार ले, तो वह इस संसार रूपी भवसागर से सहज ही पार हो सकता है।