खिरकिया। नवदुनिया न्यूज
जैन धर्म के प्रमुख पर्वो में से एक अष्टान्हिका पर्व आज गुरुवार से शुरू हो रहा है। आठ दिन मनाए जाने वाला अष्टान्हिका पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है। आठ दिन का यह उत्सव, साल में तीन बार मनाया जाता है। इस अवधि में जैन मत को मानने वाले रोज मंदिरों में विशेष पूजा, सिद्धचक्र मंडल विधान, नंदीश्वर विधान और मंडल पूजा सहित कई प्रकार के अनुष्ठान करते हैं। अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार 11 नवंबर से 19 नवंबर तक चलेगा। भगवान महावीर स्वामी को समर्पित यह उत्सव जैन धर्म के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। ये साल में तीन बार कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के महीनों में मनाया जाता है। 11 नवंबर से शुरू हो रहा ये कार्तिक मास का अष्टान्हिका उत्सव है।
इसलिए मनाते हैं अष्टान्हिकाा पर्वः समाज के जानकार अभिषेक जैन जिम्मी ने बताया कि अष्टान्हिका पर्व की शुरुआत महासती मैना सुंदरी द्वारा अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए किए गए प्रयासों से हुई थी। पति को निरोग करने के लिए उन्होंने आठ दिनों तक सिद्धचक्र विधान मंडल और तीर्थंकरों के अभिषेक जल के छीटें देने तक साधना की थी। इसका जैन ग्रथों में भी उल्लेख मिलता है। तभी से आठ दिनों में जैन धर्म का पालन करने वाले, ध्यान और आत्मा की शुद्धि के लिए कठिन तप व व्रत आदि करते हैं। इस समय हर प्रकार की बुरी आदतों और बुरे विचारों से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया जाता है। ऐसा भी माना गया है,कि इस दौरान नियम धर्म का पालन करने से जीवन की बड़ी से बड़ी आपदा भी चुटकियों में समाप्त हो जाती है। पद्मपुराण में भी इस पर्व वर्णन करते हुए कहा गया है कि सिद्ध चक्र का अनुसरण करने से कुष्ठ रोगियों को भी रोग से मुक्ति मिल गयी थी।
अष्टान्हिका पर्व का महत्वः विनीता जैन ने बताया कि जैन मतावलंबियों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में निरंतर आठ दिन तक धर्म कार्य करते हैं। कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ इन तीन माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाले इस पर्व पर जो भक्त नंदीश्वर द्वीप तक नहीं पहुंच सकते, वे अपने निकट के मंदिरों में पूजा आदि करते हैं। ये विधान हिंदी तिथि के अनुसार किया जाता है।