बलराम शर्मा। नर्मदापुरम (होशंगाबाद)
110 वर्ष प्राचीन गुरुकुल में आज भी वैदिक शिक्षा दी जा रही है। हाईटेक हो चुकी शिक्षा प्रणाली के युग में नर्मदा तट पर गुरुकुल परंपरा कायम है। गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण करने के बाद कई विदेशों में नाम कमा रहे हैं। अनेक ब्रह्मचारी विदेशों में प्राध्यापक हैं। कुछ शोध कार्य में लगे हुए हैं। हाल ही में गुरुकुल के 12 ब्रह्मचारियों का शिक्षक चयन परीक्षा में चयन हुआ है जो प्रदेश के अनेक स्कूलों में शिक्षक बनकर शिक्षा प्रदान करते हुए आत्मनिर्भर हो रहे हैं। यहां पर पढ़ाई करने वाले अनेक ब्रह्मचारी विद्वान बन चुके हैं। गुरुकुल में प्राचीन शिक्षा पद्धति से छात्रों को प्रशिक्षित किया जाता है। हर साल कुछ छात्र रिसर्च के लिए चयनित होते हैं। देशभर में गुरुकुल के विद्यार्थी बड़े पदों पर शिक्षा कार्य से जुड़े हैं। अनिल कुमार, वैभव आर्य, जितेंद्र आर्य, बलराम आर्य, मनोजीत आर्य सहित और भी कई विद्यार्थी देशभर में शिक्षा जगत में प्राध्यापक के पद पर पदस्थ हैं। इस गुरुकुल में 17 से 19 दिसंबर तक तीन दिन गुरुकुल महोत्सव मनाया जाएगा। जिसमें देश के अनेक क्षेत्रों से वैदिक विद्वान आ रहे हैं। ब्रह्मचारियों के परिजन भी विभिन्ना प्रांतों से शामिल होते हैं।
विदेशों में कर रहे नाम रोशन
गुरुकुल अध्यक्ष स्वामी ऋतस्पति परिव्राजक ने बताया कि यह गुरुकुल मप्र का वेद वेदांग दर्शन व वैदिक ग्रंथों के अध्ययन का एक मात्र में वैदिक महाविद्यालय है। यहां से विदिशा के जितेंद्र आर्य एवं मंदसौर के विजयप्रकाश ने वैदिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें फ्रांस की सरकार ने अपने यहां नियुक्त किया है। ये छात्र गुरुकुल और नर्मदापुरम का नाम रोशन कर रहे हैं। इसी तरह हालैंड में यहां के छात्र ओमप्रकाश एवं विजय प्रकाश दोनों भाई भी वैदिक धर्म का प्रचार एवं शिक्षा दे रहे हैं। और भी कई ब्रह्मचारी विदेशों में पदस्थ हैं।
लाकडाउन में भी जारी रहा अध्ययन
दुनियाभर के विश्व विद्यालयों, महाविद्यालयों, विद्यालयों में कोरोना के कारण अध्ययन रुक गया था। गुऱᆬकुल ही एक मात्र ऐसी संस्था रही जिसमें लाकडाउन के दौरान अध्ययन अध्यापन जारी रहा। गुरुक़ुल के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया गया था। अंदर किसी को आने की अनुमति नहीं दी गई थी।
लघुभारत बनता है स्वरूप
गुरुकुल महोत्सव के दौरान गुरुकुल में तीन दिनों तक एक लघुभारत का रूप देखने को मिलता है। ब्रह्मचारी, उनके पालक, शामिल होने के लिए आते हैं। देश के विभिन्ना प्रांतों के लोग एक साथ यहां पर तीन दिन तक गुरुकुल में मिलते जुलते हैं। ऐसा लगता है कि एक लघु भारत का स्वरूप बन गया हो।
सात प्रांतों के ब्रह्मचारी करते हैं वेद अध्ययन
देश के ख्याति प्राप्त इस गुरुकुल में निश्शुल्क वैदिक अध्ययन करने के लिए सात प्रांतों के ब्रह्मचारी आवासीय परिसर में रहते हैं। जिनमें उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात व मप्र के तमाम जिलों से यहां पर ब्रह्मचारी आकर गुरुकुल संस्कृति के अनुरूप चारों वेद व अन्य वैदिक अध्ययन कर विद्वान बन रहे हैं।
इनका हुआ शिक्षक चयन परीक्षा में चयन
गुरुकुल में अध्ययन करने वाले ब्रह्मचारियों ने 2018 में शिक्षक चयन परीक्षा में हिस्सा लिया था। पिछले माह ही 12 उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में चयन हुआ है। जिनमें विक्रम देव, अनिल देव, सत्य पाल आर्य, योगेश कुमार, महाराज सिंह, सुरेंद्र कुमार, सुदीप कुमार, बलराम आर्य, जितेंद्र आर्य, अजीत आर्य, प्रतीक आर्य,और सोमेंद्र कुमार शामिल हैं।
गुरुकुल महोत्सव में होंगे अनेक कार्यक्रम
प्राचीन गुरुकुल में 17 दिसंबर से तीन दिन तक वैदिक विद्वानों का सम्मेलन हो रहा है। गुरुकुल अध्यक्ष स्वामी ऋतस्पति परिब्राजक ने बताया कि तीनों दिन सुबह से सामवेद का पारायण, हवन, आसन,प्राणायाम, ध्यान शिविर, ओम ध्वजारोहण होगा। शुक्रवार को सुबह 10 से गुरुकुल के ब्रम्हचारियों आचार्यों व विद्वानों की शोभायात्रा निकाली जाएगी जो शहर के मुख्य मार्ग से होते हुए सेठानी घाट पर समाप्त होगी। उसके बाद अपरान्ह में वैदिक सत्र होंगे। दूसरे दिन विविध सम्मेलन के साथ ही वैदिक विद्वानों का सम्मान होगा। 19 को समापन समारोह व ब्रम्हचारियों के द्वारा अखाड़ा प्रदर्शन व विदाई समारोह होगा।