नाग कन्या की प्रतिमा के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से निकाली शोभायात्रा

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सोहागपुर। नागपंचमी पर चौरसिया समाज द्वारा निकाली गई शोभायात्रा।

सोहागपुर। नवदुनिया न्यूज

शुक्रवार को श्रावण मास की पंचमी के दिन चौरसिया समाज के लोगों ने नागपंचमी का उत्सव मनाया। इस दौरान समाज के लोगों ने जवाहर वार्ड से नागकन्या की प्रतिमा के साथ शोभायात्रा निकाली। शोभायात्रा के साथ आखड़े का प्रदर्शन भी किया गया। समाज के युवा एवं बधो लाठ,बरछी,गोले,पटा बनेटि आदि से कर्तव्य दिखा रहे थे। शोभायात्रा में शामिल आखड़े के खलीफा तेजराम चौरसिया ने बताया कि इस वर्ष भी पूर्व अनुसार पान के बरेजों में नाग देवता की पूजा की गई है। नागपंचमी को सामाजिक लोग चौरसिया दिवस के रूप में मानते हैं। शोभायात्रा जवाहर वार्ड से निकालकर पुराना अस्पताल रोड, बिहारी चौक, कमनियगेट, मुख्य बाजार क्षेत्र होते हुए एसडीओपी कार्यालय से होते हुए जवाहर वार्ड पहुची जहां पर सामाजिक लोगों ने नागदेवता की पूजन अर्चन कर प्रसादी का वितरण किया गया। शुक्रवार को निकली गई शोभायात्रा में चन्द्रकांत चौरसिया, रामस्वरूप चौरसिया, महेंद्र चौरसिया, तेजराम चौरसिया, आकाश चौरसिया ,कल्लू चौरसिया, संतोष चौरसिया, रूपेश, रंजीत, अंशु, स्वप्निल आदि साथ थे।

चौरसिया शब्द की उत्पत्ति और अर्थ

चौरसिया समाज की उत्पत्ति के पीछे बहुत सारी किवदंतिया है । चौरसिया समाज की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'चतुरशीतिः' से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ 'चौरासी' होता है अर्थात चौरसिया समाज चौरासी गोत्र से मिलकर बना है। वास्तविकता में चौरसिया, तम्बोली एवम् बरई समाज की एक उपजाति हैं।तम्बोली शब्द की उत्पति संस्कृत शब्द 'ताम्बुल' से हुई है जिसका अर्थ 'पान' होता है। चौरसिया समाज के लोगों द्वारा नागदेव को अपना कुलदेव माना जाता है। नागपंचमी के दिन चौरसिया समाज द्वारा ही नागदेव की पूजा करना प्रारम्भ किया गया था तत्पश्चात संपूर्ण भारत में नागपंचमी पर नागदेव की पूजा की जाने लगी।

नागदेवता क्यों है चौरसिया समाज के इष्टदेव

पूर्व में चौरसिया समाज का एक मात्र रोजगार का साधन था पान बरेजा जिसमें पान उगाकर वे अपनी रोजी रोटी चलते थे, लेकिन बरेजों में लगी पान की बेल को चूहों द्वारा काफी नुकशान पहुंचता था। चूहे नागबेल को खाकर नष्ट करते हैं। इस तब नागदेव द्वारा चूहों से नागबेल(जिस पर पान उगता हैं) कि रक्षा की जाती है। तब से समाज के लोगों ने अपने आराध्य देव और रोजगार रक्षक को श्रावण मास की पंचमी को पूजना प्रारम्भ किया । नागपंचमी का त्यौहार इस समाज विशेष द्वारा एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। नागपंचमी के त्यौहार को पूरे भारतवर्ष के कई क्षेत्रों में अनेक प्रकार से बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

चौरसिया समाज की चौरासी गोत्र में से कुछ मुख्य गोत्र

जिन चौरासी गोत्र को मिलाकर चौरसिया समाज का उदय हुआ उनमें मुख्य रूप राजधीर, रसेला, भगत, चौऋ षि, कश्यप, भरद्वाज, ऋषि, ब्रह्मचारी, सांडिल्य, मोदी, चौधरी, भाटिया, शर्मा, गौरह, बराई, तम्बोली, राई, नाग, मुंशी, बारी, राऊत, रमेला, गोरेला, कटारिया, बन्दीछोड महोबिया, मंजूरियां, धेनु, वृन्दावन का खम्ब, धानक समान,बंधरैला, झगड़ैला इत्यादि गोत्र शामिल हैं।

महाभारतकाल से समाज उत्पत्ति का इतिहास

एक मान्यता के अनुसार पांडवों द्वारा युद्घ में कौरवों को परास्त करने के बाद संपूर्ण भारतवर्ष से ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया तथा एक महायज्ञ का आयोजन किया गया। यज्ञ प्रारम्भ करने के लिये पान की आवश्यकता थी लेकिन उस समय पान पृथ्वी पर मौजूद नही था।एक राजदूत को पाताल भेजा गया जहां पाताल लोक के राजा नाग वासुकि ने राजदूत को उंगली के ऊपरी भाग (पोर) को काटकर दिया।राजदूत द्वारा पृथ्वी पर आकर इस उंगली के भाग को बीजारोपित किया गया। जिससे एक बेल उत्पन्न हुई जिसे नागबेल कहा गया । नागबेल पर ही पान उगा।इस तरह पान पृथ्वी पर आया।इस नागबेल की रक्षा और खेती है तू चौरसिया समाज को चुना गया।इस प्रकार चौरसिया समाज महाभारत काल के साक्षी भी कहलाते हैं।

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