पिपरिया। ग्राम खैरा में जारी श्रीराम कथा के अंतिम सोपान में कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने श्रोताओं को भरत व केवट प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भरत व केवट से त्याग और भक्ति की प्रेरणा लेनी चाहिए। क्योंकि राम और भरत ने संपत्ति का बंटवारा नहीं किया, बल्कि विपत्ति का बंटवारा किया और केवट ने समर्पित भाव से भगवान राम के पैर धोए थे। साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी मां अपने बेटों को कष्ट नहीं देती है। वन गमन के समय श्रीराम की भेंट उनके प्रिय सखा निषाद राज से हुई। तत्पश्चात गंगा नदी पार करने के लिए भगवान केवट से मिले। भगवान को साक्षात सामने पाकर केवट अपनी व्यथा सुनाई। केवट ने कहा कि जब तक आप अपने चरण नहीं पखारने देंगे, तब तक मैं आपको नदी पार नहीं करवाने वाला। अंत में भगवान को विवश होकर केवट से चरण पखरवाने पड़े। भगवान के चरण पकड़ने का अवसर केवट को प्राप्त हुआ, जिससे उसके साथ-साथ उसकी समस्त पीढ़ी तर गई। आप सभी यदि सच्चे मन से भगवान की भक्ति करेंगे तो भगवान के दर्शन प्राप्त होंगे। राम भरत मिलाप प्रसंग सुनाते हुए कहा कि प्रभु राम ने भरत को रघुवंश का हंस कहा। भरत प्रेम रूपी अमृत के सागर हैं। भरत चित्रकूट से श्रीराम की चरण पादुका लेकर आए। चरण पादुका को ही सिंहासन पर रखकर भगवान के अयोध्या वापस आने तक राम राज्य की स्थापना कर डाली। पंडित भारद्वाज ने श्रोताओं से कहा कि जब हम अपने जीवन मात्र में अपने प्रति अन्य सबसे योगदान के बारे में करेंगे। भगवान राम पर दृष्टिगत करेंगे तो अनुभव करेंगे कि अपने जीवन में हमारा योगदान शून्य हैं। हम सभी को अपनी योग्यता बढ़ानी होगी देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने गीता का सार अध्ययन करने के बाद अपनी योग्यता का विस्तार कर अपना पूरा जीवन राष्ट्र की उन्नाति हेतु लगा दिया। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में वेदांत का प्रचार कर अध्यात्म की दशा में भारत को विश्व का सिरमौर बनाया। जो सच्चा ज्ञानी होता है, वही समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। कनिष्ठ भी अपने गुणों से श्रेष्ठ हो सकता है। क्योंकि श्रेष्ठता सदैव गुणों पर ही निर्भर करती है। विषम परिस्थितियों में कष्टों के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए। श्रेष्ठा प्राप्त करने का यह प्रथम सोपान है। भरत से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि त्याग व भक्ति की सदैव श्रेष्ठ होती है।