236 साल के इतिहास में पहली बार मंदिर में महिला पुजारी
होल्कर राजवंश द्वारा 236 साल पहले बनवाए गए बांके बिहारी मंदिर में एक महिला को पुजारी बनाया गया है।
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Publish Date: Fri, 07 Oct 2016 12:21:11 AM (IST)
Updated Date: Fri, 07 Oct 2016 12:26:30 AM (IST)

इंदौर। जितेंद्र यादव। होल्कर राजवंश द्वारा 236 साल पहले बनवाए गए बांके बिहारी मंदिर में एक महिला को पुजारी बनाया गया है। होल्कर शासनकाल के बाद यह पहला मौका है जब एक महिला को इस मंदिर में पुजारी के पद पर नियुक्ति दी गई है।
मध्यप्रदेश शासन के अधीन इस मंदिर में पुजारी के रूप में बिमलाबाई की नियुक्ति के आदेश कमिश्नर संजय दुबे ने जारी किए हैं। यह मंदिर महानुभाव पंथ से जुड़ा है। हालांकि इस पंथ में पुरुष और महिलाओं में भेदभाव नहीं किया जाता फिर भी मुख्य पुजारी के रूप में महिला की नियुक्ति अब जाकर हुई है।
पुजारी महंत राघवेंद्र के जनवरी में निध्ान के बाद पुजारी पद खाली हो गया था। बिमलाबाई 15 साल से इस मंदिर की सेवा कर रही हैं। उनकी सेवा को देखते हुए उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है। मंदिर होल्कर राजवंश के महाराजा मल्हारराव होल्कर की एक रानी हड़कूबाई ने बनवाया था।
वे अहिल्याबाई की सास थीं। महाराष्ट्र से आई हड़कूबाई महानुभाव पंथ से जुड़ी थीं। हड़कूबाई से प्रभावित होकर मल्हारराव उसे अपने साथ लेकर आए थे और इंदौर के राजवाड़े में उन्हें खांडा रानी (तलवार उठाने वाली रानी) का दर्जा दिया था।
हड़कूबाई की भावना का सम्मान करते हुए मल्हारराव ने राजवाड़ा के बायीं ओर महानुभाव पंथ के देवता और कृष्ण के एक रूप बांके बिहारी मंदिर बनाने के लिए स्थान उपलब्ध कराया। उत्तर में इसे जय कृष्णी पंथ के नाम से भी जाना जाता है। इस पंथ के अनुयायी और कुछ मंदिर पाकिस्तान में भी थे। देश विभाजन के समय इस पंथ के कई साधु भी इंदौर के बांके बिहारी मंदिर में आकर ठहरे थे।
ऐसा है महानुभाव पंथ
महानुभाव पंथ वास्तव में कृष्ण की भक्ति पर आधारित है। महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली सहित देशभर में इसके लाखों अनुयायी हैं। उत्तर भारत में इसे जय कृष्णी पंथ के नाम से जाना जाता है।
महानुभाव पंथ के जानकार राजेंद्र आनंद के मुताबिक, द्वापर में कृष्ण और दत्तात्रय अवतार के बाद कलियुग में चक्रधर स्वामी हुए। उन्होंने वे जहां-जहां गए, ठहरे और जिन पत्थरों पर बैठे उन्हें पवित्र माना गया।
उन्हीं पाषाणों से उनकी मूर्तियां बनाई गईं और महाराष्ट्र में अलग-अलग जगह उनकी स्थापना करके मंदिर बनाए गए। ऐसे ही मंदिर उत्तर भारत में भी बनाए गए हैं। इस पंथ के अनुयायी कृष्ण के किसी और रूप को नहीं मानते।
महानुभाव पंथ आत्मा और परमात्मा के द्वैतवाद पर आधारित है।
इसमें आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग माना गया है। इस पंथ में पुस्र्षों और महिलाओं में भेद नहीं किया जाता। पंथ के आश्रमों और मंदिरों में कई महिलाएं भी सेवा दे रही हैं।