इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। कोरोना संक्रमण के कारण जिन बच्चों ने अपने अभिभावकों को खोया है उन बच्चों के हित में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पुनर्वास योजना वैश्विक स्तर पर एक उदाहरण है। यह बात राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं सरंक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के 48 वीं ई-प्रशिक्षण सह संगोष्ठी में कही।
कानूनगो ने सीसीएफ डिजिटल प्लेटफार्म पर 20 राज्यों एवं चार केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े तीन सौ से ज्यादा बाल अधिकार कार्यकर्ताओं से चर्चा की। उन्होंने कार्यकर्ताओं द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि कोई भी बाल गृह 18 साल से कम आयु वर्ग के बच्चों को संवैधानिक रूप से धर्म सबंधी आग्रह नहीं थोप सकता। यदि ऐसा कहीं होता है तो बाल कल्याण समितियों को तत्काल पुलिस प्राथमिकी दर्ज कराने की पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में एक बड़ा तबका बाल शोषण की तस्वीरों को अतिरंजित ढंग से प्रस्तुत करता है क्योंकि इसके लिए उन्हें विदेशी मदद मिल रही है। इसकी वजह यही है कि वे चाहते हैं कि भारत की छवि वैश्विक स्तर पर खराब की जा सकें।
गत वर्ष लाकडाउन के दौरान एक संस्थान के अनुसार 11 दिनों में प्राप्त तीन लाख शिकायत में से 92 हजार बच्चों के यौन शोषण का दावा किया गया, लेकिन आयोग ने जब इन शिकायतों के परीक्षण के लिए उस संस्थान को समन जारी किया तो उनमें से महज 171 शिकायत ही प्रामाणिक पाई गई। सीडब्ल्यूसी सदस्यों से बाल गृहों के सतत निरीक्षण का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि आयोग ने मासी नाम से एक डिजिटल निरीक्षण ऐप बनाया है जिसके पैरामीटर्स पर निरीक्षण किया जाना चाहिए। प्रशिक्षण को संबोधित करते हुए फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. राघवेंद्र शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। प्रशिक्षण सत्र का संचालन फाउंडेशन के सचिव डा. कृपाशंकर चौबे ने किया। आयोजन में सीडब्ल्यूसी इंदौर की अध्यक्ष पल्लवी पोरवाल सहित अन्य सदस्यों ने भी उपस्थिति दर्ज कराई।